मेरी प्रिय पुस्तकः रामचरितमानस
Meri Priya Pustak - Ramcharitmanas
मानव जीवन में पुस्तकें अहम भूमिका निभाती हैं।
वैसे तो अध्ययनशील प्राणी अनेकों पुस्तकें पढ़ते हैं किंतु कुछ पुस्तकें मानव जीवन
को प्रेरण देने वाली होती हैं तथा अपनी रुचि के अनुरूप वे किसी न किसी को आदर्श व
प्रिय बन जाती है। वैसे तो हिंदी साहित्य सहस्रों उत्कृष्ट रचनाजे से समृद्ध है
तथा अनेकों महाकाव्यों, प्रबंध काव्यों, कहानियों, नाटकों
में मुझे प्रभावित किया है किंतु जिस ग्रंथ ने मुझे सर्वाधिक प्रभावित किया वह
है-महाकवि तुलसी कृत 'रामचरितमानस'।
रामचरितमानस अवधी भाषा में लिखा एक ऐसा
काव्यात्मक ग्रंथ है। जो अपने कथानक, काव्यसौष्ठव, कल्पनात्मकता, मानवीयता
तथा संवेदनात्मकता के कारण अद्वितीय है। इसमें राम के जीवन की कथा है। रामचरितमानस
सात कांडों में विभक्त है-बालकांड, अयोध्याकांड अरण्यकांड, किष्किंधाकांड, सुंदूरकांड, लंकाकांड
तथा उत्तरकांड। दोहे तथा चौपाइयों में लिखे इस महाग्रंथ में राजा दशरथ द्वारा
पुत्रेष्टि यज्ञ तथा राम व भाइयों का जन्म,
राम-लक्ष्मण का विश्वामित्र के आश्रम
जाना, राम विवाह,
कैकेयी द्वारा वर माँगने पर राम को
वनवास, राम-लक्ष्मण व सीता का पंचवटी में निवास, मारीच
का माया-मृग बनना व सीता हरण, रामसग्रीव भेंट, बालि वध, सीता
खोज, हनुमान का लंका जलाना, राम-रावण
युद्ध, राम का राज्य-अभिषेक, शिव-पार्वती
संवाद व काकभुशुण्डि संवाद का मनोहारी वर्णन है।
गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में
मर्यादावाद का पूर्ण पालन किया है। राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं वे आदर्श पुत्र, आदर्श
राजा तथा आदर्श स्वामी है। वे मर्यादा के रक्षक, लोक-विरोधी
तत्वों का विनाश करनेवाले तथा लोकधर्म के प्रवर्तक है। तुलसीदास ने राम कथानक को
इस भव्य रूप में प्रस्तुत किया है कि राम में शील, शक्ति और
सौंदर्य का अद्भुत समन्वय है। मानस का पाठ करते समय पाठक
तुलसी की काव्यदक्षता तथा राम पर्ण छवि से रागात्मक संबंध स्थापित कर अभिभूत हो
उठता है। मचरितमानस' धर्म, आदर्श मित्र, आदर्श पारिवारिक
जीवन, भातृधर्म,
की उत्कृष्ट मिसाल है। यह ग्रंथ
प्रत्येक आयु व वर्ग के पाठकों के लिए उपयुक्त है। मानस आपसा व्यवहार, सत्संगति, व्यापार, दर्शन, अक्ति, वैराग्य, राजनीति, सदाचार, चरित्र
तथा लोकोपयोगी समस्त नीतियों का व्यावहारिक ज्ञान करानेवाला ऐसा अनूठा ग्रंथ है जो
विश्व के साहित्य में अपना सानी नहीं रखता। ज्ञान, भक्ति व नीति की
राह दिखाने वाली इसकी उत्कृष्टता मुझ सर्वाधिक प्रभावित करती है।
'रामचरितमानस
में तुलसी दास की अद्वितीय काव्यदक्षता व रसात्मक प्रतिभा के दर्शन होते हैं। मानस
की कोमल कांत पदावली व गेयात्मकता पाठक को भावविभोर कर देती है। मानस में सभी रसों
व अलंकारों की सहज प्रस्तुति को देखा जा सकता है। सत्यं शिवं सुंदरं का काव्यात्मक
प्रभावशाली दर्शन रामचरित मानस में किया जा सकता है।
भाव, भाषा, शैली, अलंकार रस व पदलालित्य का ऐसा भव्य मिश्रण शायद
ही किसी अन्य ग्रंथ में मिले। कवि ने लोक कल्याणकारी कथानक को अत्यंत रसीले व
प्रभावशाली ढंग से व्यक्त किया है। डा. विजयेन्द्र स्नातक लिखते हैं "तुलसी कृत रामचरित हिंदी साहित्य कानन का
विशाल वृक्ष है। इसकी शाखा-प्रशाखाओं के काव्य-कौशल की चारुता और रमणीयता चारों ओर
बिखरी पड़ी है। इसी कारण कहा गया है-
कविता करके तुलसी न लसै
पै कविता लसी पा तुलसी की कला
किसी भी ग्रंथ की मौलिकता, सरलता, सुबोधता, नैतिकता, रोचकता, काव्यशीलता, रमणीयता
उसे आकर्षक बनाती है। रामचरित मानस प्रत्येक अपत दृष्टिकोण से सर्वोत्कृष्ट ग्रंथ
है। रामचरितमानस के सब रसों का इतना उपर समन्वय व प्रस्तुतीकरण है जो मुझे अत्यंत
मोहित करता है।
'रामचरितमानस' में
सत, रज और तम को ध्यान में रख कर तीनों प्रकार के
पात्रों का संगम किया गया है। गोस्वामी तुलसीदास ने मानस के कथानक में नाना
पुराणों निगमागम, वाल्मीकि रामायण, अध्यात्म रामायण, रघुवश
तथा हनुम्ननाटक का आधार लिया है। इन प्रसंगों में कथात्मकता व काव्यात्मकता के
अद्भुत संयोग के साथ-साथ तुलसीदास ने अनेक सुंदूर नवीन प्रसंगों की रचना भी की है।
कथानक में पात्रों के परस्पर संवाद तथा कथानक अनेक मनोवैज्ञानिक सूत्रों से आबद्ध
हैं। संपूर्ण कथानक से राम के आदर्श रूप के साथ-साथ सीता आदर्श पली, कौशल्या
आदर्श माता, लक्ष्मण व भरत आदर्श भाई, हनुमान
आदर्श सेवक, सुग्रीव आदर्श सखा रूप में उभर कर सामने आते
हैं।
'मानस' रचना
में तुलसीदास ने लोकहित की भावना को मूल में रखा तथा रावणत्व पर रामत्व की विजय
दिखाई है। कथानक में काम, क्रोध, मद, मोह करनेवालों का विनाश दिखाया जाना पाठकों को
राह दिखाता है। काम की शूर्पनखा, मद में चूर परशुराम व रावण का विनाश नैतिकता की
राह दिखाता है। समस्त ग्रंथ एक युग प्रवर्तक की भाँति पथप्रदर्शन करता रहता है।
सीता-राम का परस्पर दर्शन, राम वन-गमन,
भरत की ग्लानि, राम
विरह आदि के प्रसंग अत्यंत मर्मस्पर्शी है। 'मानस' के सभी पात्रों के चरित्र जीवन के विभिन्न
क्षेत्रों के संदेश देते हैं। इनके साथ-साथ पशुपक्षियों की प्रकृति चित्रण में भी
तुलसीदास की मनोवैज्ञानिकता के दर्शन होते हैं।
'रामचरितमानस' का
इतिवृत्त, चरित्र-चित्रण, प्रकृति वर्णन, भाषा, रस, छंद
व अलंकार निधान, पौराणिक व नैतिक पक्ष का अद्भुत संयोग देखकर।
इसे प्रबंध ही नहीं महाकाव्य की संज्ञा भी दी जा सकती है। यह ग्रंथ समय की सीमा
पार अमर बन गया है तथा हर वर्ग के पाठकों को राह दिखाता है। इसके पठन से मुझे
हरबार एक नई प्रकाश की किरण दिखाई देती है। यही कारण है कि अनेक आलोचकों ने इस
ग्रंथ की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल लिखते हैं, "तुलसी
की वाणी की प्रेरणा से आज जनता अवसर के अनुकूल सौंदर्य पर मुग्ध होती है, ममत्व
पर श्रद्धा करती है, शील की ओर प्रवृत्त होती है, सन्मार्ग पर पैर रखती है, विपत्ति
में र्य ती है कठिन कार्य के लिए उत्साहित होती है, दया से आर्द्र होती है,
बुराई से घृणा करती है, शिष्टता
का आलिंगन करती है और मानव जीवन का महत्व अनुभव करती है।"
मेरा प्रिय ग्रंथ 'रामचरितमानस
निश्चित रूप से ऐसा महाकाव्य ग्रंथ है जो जीवन की प्रत्येक स्थिति में पथप्रदर्शक बन राह
दिखाता है। जीवन मल्यों व नैतिकता के सूत्रधार इस अनुपम ग्रंथ की लौकिकता में भी
अलौकिकता है। इस ग्रंथ जैसा सारयुक्त पथप्रदर्शक महान ग्रंथ हिंदी साहित्य में कोई
अन्य नहीं। अपनी काव्यात्मकता में यह अनुपम है तथा नीतिपरक गुणात्मकता में अद्वितीय।
रामचरितमानस ने ही महात्मा गांधी को राम राज्य के उच्च आदर्शों की ओर प्रेरित किया।
निश्चित रूप से मानस हिंदी साहित्य की अमिट अमूल्य निधि है।
1 Comments
itna shabad katin mat likho ki yad hi nahi ho paye
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