ओलंपिक खेल

Olympic Games 

 

आदिकाल से मनुष्य खेलों के महत्त्व को समझता रहा है। स्वभावतः वह जन्म लेते ही खेलने लगता है। यही खेल धीरे-धीरे सुव्यवस्थित खेलों का रूप धारण कर लेते हैं। खेल सदा से मनुष्य को मनोरंजन प्रदान करते आए हैं। यूनान के दार्शनिकों ने खेलों की उपयोगिता को जाना। वर्तमान में आयोजित ओलंपिक खेल उसी का विकसित रूप हैं।

 

ओलंपिक खेलों के आयोजन का इतिहास अत्यंत प्राचीन है। माना जाता है कि 776 ई. पूर्व यूनान के एथेन्स नामक स्थान पर ओलम्पिया पर्वत के समीप सर्वप्रथम कुछ खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन किया गया था। यूनान में प्राचीन काल से धर्म व दर्शन को माना गया। वहाँ के नागरिक अपने देवता, उसकी आराधना और देवता को भेंट अर्पित करने की परंपरा के अनुरूप विभिन्न उत्सवों का आयोजन करते थे। इसी परंपरा की एक श्रृंखला के रूप में विभिन्न खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन भी किया। जाता था। आरंभ में इस आयोजन में पुरुषों की दौड़ ही प्रमुख आकर्षण होती थी। अनेक वर्षों तक ये खेल प्रतियोगिताएँ केवल यूनान तक ही सीमित रहीं। तत्पश्चात सामाजिक व राजनैतिक उथल-पुथल के युग में ये धीरे-धीरे समाप्त हो गईं।

 

आधुनिक ओलंपिक खेल प्रतियोगिताओं को आरंभ करने का श्रेय फ्रांस के एक सामंत बैरी पीरेडि कौबरटीन को जाता है। उन्होंने सन 1896 में एथेन्स में आधुनिक ओलंपिक की नींव डाली तथा प्राचीन खेल परंपरा व सदभावना को पुनर्जन्म दिया। उन्होंने कहा-जीवन जीतने के लिए है,। अच्छी तरह लड़ने के लिए है। खेल मानवता के हित के लिए युगों तक चलते रहेंगे। मानव के आत्मविश्वास और हिम्मत का इतिहास खेलों के द्वारा सदा जीवित रहेगा।

 

जब से विश्व के भिन्न-भिन्न भागों में प्रत्येक चार वर्ष बाद ओलंपिक तियोगिताओं का आयोजन किया जाता है। इन खेलों का अंतर्राष्ट्रीय भावना स्थापित कराने में विशेष महत्त्व है। इन खेलों में भाग लेने के लिए प्रत्येक राष्ट्र के खिलाड़ी अथक परिश्रम कर विजय का गौरव अपने देश को दिलाने का प्रयत्न करते हैं। राष्ट्रीय गौरव की इस भावना को जनजन में प्रवाहित करने में इन खेल प्रतियोगिताओं की प्रमुख भूमिका है।

 

ओलंपिक खेलों की 'मशाल' भी इन खेलों में अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। संसार के जिस भी भाग में ओलंपिक प्रतियोगिताओं का आयोजन होता है, ये जलती हुई मशाल धावकों के हाथ वहाँ पहुँचती है। वर्तमान में इन खेलों के आयोजन के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय समिति का गठन किया गया है। यह समिति ही तय करती है कि अगली बार खेलों का आयोजन कहाँ किया जाएगा। प्रत्येक भाग लेनेवाला राष्ट्र अपने-अपने खिलाड़ियों का खर्च स्वयं उठाता है। आधुनिक प्रथम ओलंपिक में आठ देशों ने भाग लिया था। इसमें कुल बारह तरह की खेल प्रतियोगिताएँ रखी गई थीं। उसके बाद ये पेरिस, लंदन, बर्लिन, रोम, टोकियो आदि विभिन्न स्थानों पर आयोजित हुईं। सन 1916, 40 तथा 44 में विश्व युदधों के कारण ओलंपिक खेलों का आयोजन नहीं हुआ था।

 

ओलंपिक खेलों के प्रथम दिन भव्य परेड का आयोजन किया जाता है। प्रतियोगिता में भाग लेनेवाले सभी खिलाड़ी अपनी विशिष्ट वेशभूषा में अपने राष्ट्रीय ध्वज के साथ चलते हैं। जिस भी देश में इनका आयोजन होता है, वहाँ का राष्ट्राध्यक्ष इसका औपचारिक उद्घाटन करता है। तत्पश्चात ओलंपिक ध्वजारोहण होता है। ओलंपिक खेलों का एक विशेष ध्वज है। यह सफ़ेद वस्त्र का बना है जिस पर पाँच रंगीन गोले परस्पर संबद्ध है। इस अवसर पर हजारों कबूतर उडाए जाते हैं। सामूहिक राष्ट्रगीत गाए जाते है। इसके बाद सभी प्रतिभागी शपथ लेते हैं कि वे स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को भावना से ओलंपिक खेलों के नियमों का आदूर करते हुए सच्ची खेलभावना से खेल खेलेंगे।

 

ओलंपिक खेलों का समापन समारोह भी मोहक होता है। इसी समान में अगली प्रतियोगिता के स्थान की घोषणा की जाती है। खेलों के दौरान ओलंपिक मशाल निरंतर प्रज्वलित रहती है तथा ओलंपिक ध्वज लहराता रहता है। विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों तथा रंगारंग आतिशबाजियों से इस प्रतियोगिता का समापन होता है। इन प्रतियोगिताओं में पुरस्कार प्राप्त विजेताओं की विश्वभर में चर्चा होती है। इन प्रतियोगिताओं करना किसी भी राष्ट्र के लिए सम्मान व प्रतिष्ठा की बात होती है।

 

ओलंपिक खेलों के इतिहास में गत पचास वर्षों में कुछ दुर्भावना व ईर्ष्याग्रस्त घटनाएँ भी घटित हुई हैं। इन खेलों में अंतर्राष्ट्रीय सद्भावना व राष्ट्रीय गौरव की भावना को वृद्धि व विकास मिलता है परंतु सन 19361 में बर्लिन में आयोजित प्रतियोगिता के दौरान हिटलर द्वारा नीग्रो खिलाड़ी ओवेन से हाथ न मिलाना, 1972 में म्यूनिख में पाकिस्तान के खिलाड़ियों का अभद्र व्यवहार, 19वीं प्रतियोगिता में अमेरिका तथा उसके समर्थक राष्ट्रों का हिस्सा न लेना तथा 23वें ओलंपिक में रूस आदि देशों का बहिष्कार जैसी कुछ घटनाएँ ओलंपिक के इतिहास में पनपी राजनीतिक दुर्भावना की वे घटनाएँ हैं जो शीघ्र ही छट जाएँ तो विश्वभर के लिए अच्छा होगा। ओलंपिक का मैदान ही विश्व का वह एकमात्र अनूठा स्थान है जहाँ सभी राष्ट्रों के राष्ट्रीय गीत एकसाथ एक मंच पर गाए जाते हैं। यह उत्कृष्ट मानवता, सद्भावना, शांति व भाईचारे की दिशा में वह उत्तम प्रयास है जिसकी मानवता को युगों से आवश्यकता रही है।