वर्तमान शिक्षा प्रणाली 

Vartman Shiksha Pranali

अथवा

शिक्षा और नौकरी 

Shiksha aur Naukari

अथवा

आज की शिक्षा 

Aaj ki Shiksha

 

ज्ञानार्जन का सर्वश्रेष्ठ साधन शिक्षा है। शिक्षा ही मनुष्य की समस्त शक्तियों का विकास कर उसे पूर्ण मानव बनाती है। मनुष्य के संपूर्ण विकास के लिए ऐसी शिक्षा की आवश्यकता होती है जो उसकी मानसिक, बौद्धिक और शारीरिक शक्तियों, उसकी वृत्तियों का समान विकास कर सके। वर्तमान भारतीय शिक्षा प्रणाली इन महत उद्देश्यों को पूरा करने में व्यावहारिक रूप से असफल है।

 

आधुनिक युग की भारतीय शिक्षा व्यवस्था ब्रिटिश काल की देन है। लॉर्ड मेकाले ने ब्रिटिश संसद में कहा था, "मुझे विश्वास है कि इस शिक्षा योजना से भारत में एक ऐसा शिक्षित वर्ग बन जाएगा जो रक्त और रंग से तो भारतीय होगा पर रुचि, विचार और भाषा से अंग्रेज।" निश्चित रूप से आज की शिक्षा प्रणाली ने मानव मस्तिष्क को इतना संकुचित बना दिया कि ज्ञान का महत्त्व ही नष्ट हो गया और शिक्षा का उद्देश्य नौकरी तक ही सिमट गया। आज की शिक्षा पद्धति व्यक्ति विशेष की विशिष्टताओं को उभारने, निखारने तथा जीवन की व्यावहारिक कठिनाइयों को हल करने में सर्वथा असफल है।

 

किसी भी देश की शिक्षा प्रणाली वहाँ की आवश्यकताओं तथा मान्यताओं पर आधारित होती है। जनसंख्या प्रधान देश भारत की वर्तमान शिक्षा व्यवस्था देश की वर्तमान आवश्यकताओं के अनुकूल नहीं है। कार्यपरक शिक्षा की व्यवस्था हमारे देश की मूलभूत आवश्यकता है जिससे आधकाधिक नवयुवक व नवयुवतियाँ शिक्षा प्राप्त कर न केवल अपनी स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से शिक्षा प्रणाली में सुधार की ओर मनीषियों का ध्यान गया। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया गया जिसने सहशिक्षा व अध्यापकों का स्तर बढ़ाने के सुझाव दिए। कोठारी आयोग की सिफारिशों के आधार पर त्रिभाषा शिक्षा, निशुल्क शिक्षा, पाठ्यपुस्तक स्तर में सुधार जैसे निर्णय लिए गए। सन 1986 में 'नई शिक्षा नीति' का प्रारूप तैयार किया गया। उसमें तय किया गया कि वर्तमान शिक्षा को व्यावहारिक जीवन से जोड़ना आवश्यक है। विकलांगों, पिछड़ी जातियों तथा महिलाओं को शिक्षा की सुविधा तथा सभी छात्रों को वैज्ञानिक व तकनीकी शिक्षा देना अनिवार्य घोषित किया गया।

 

इससे पूर्व ही शिक्षा संगठन का समस्त भार राष्ट्रीय शिक्षा अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद के ऊपर छोडा गया। उसने जो रूपरेखा प्रस्तुत की उसी के अनुरूप नई शिक्षा नीति को लागू कर दिया गया। 10+2+3 की प्रणाली को भी जिस उद्देश्य से आरंभ किया गया था, उसका भी लाभ छात्रों को नहीं मिल पा रहा है। यद्यपि छात्र के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए इसमें अपेक्षाकृत अधिक अवसर हैं।

 

आधुनिक शिक्षा प्रणाली समय के साथ-साथ जटिल तथा विषयपरक हो गई है। अलग-अलग राज्यों के पाठ्यक्रम में विभिन्नता तथा भाषा की समस्या से छात्रों के भविष्य पर प्रश्नचिह्न लग जाता है। पाठ्यक्रम की क्लिष्टता तथा अधिकता के कारण छात्रों का अधिकांश समय पुस्तक अध्ययन व परीक्षा देने में ही व्यतीत हो जाता है। शिक्षा का व्यावहारिक पक्ष अत्यंत कमजोर है।'

 

माध्यमिक शिक्षा के पश्चात भी छात्रों को विभिन्न कार्यों में प्रशिक्षण देने की व्यवस्था होनी चाहिए। नई शिक्षा नीति का अंशमात्र पालन करने से उसके उद्देश्यों को प्राप्त नहीं किया जा सकता। देश के प्रत्येक भाग में शिक्षा में समानता होनी चाहिए ताकि किसी भी परीक्षा में कोई भी विद्यार्थी समान स्तर से आँका जा सके। विद्यालयी परीक्षा के आधार पर ही उच्च शिक्षा में प्रवेश प्राप्त होना चाहिए ताकि उस विद्यालयी शिक्षा का छात्रों को समुचित मूल्य मिल सके।

 

शिक्षा प्रणाली के दोषों पर पिछले अनेक वर्षों से विभिन्न स्तरों पर विमर्श किया जा रहा है परंतु इस दिशा में क्रांतिकारी कदम उठाने की नितांत आवश्यकता है।

 

नई शिक्षा नीति में व्यापक स्तर पर अनौपचारिक शिक्षा और तकनीकी का प्रावधान है। व्यावसायिक व वैज्ञानिक पाठ्यक्रमों को बढ़ावा दिए की नीति बनाई गई है ताकि देश औद्योगिक व आर्थिक विकास कर के विभिन्न नीतियाँ बनाई जाने पर भी व्यावहारिक तौर पर उनका क्रियान्वयन नहीं किया गया जिससे देश में आज भी बेरोजगारी की समस्या ज्यों की त्यों है। शिक्षा को रोजगारपरक बनाने का स्वप्न केवल नीतियों में ही सिमट कर रह गया। इस दिशा में अनेक तकनीकी संस्थान, शिक्षण केंद्र तथा प्रबंध समितियाँ बनीं परंतु देश की बढ़ती आबादी के अनुपात में सभी सुविधाएँ हमेशा कम ही रहीं।

 

विशुद्ध पुस्तकीय व कलात्मक शिक्षा से देश की औदयोगिक व व्यावसायिक आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं की जा सकती। बनाई गई नई शिक्षा नीति को पूरी तरह से लागू करने पर ही उसका लाभ उठाया जा सकता है। राष्ट्र को सक्षम बनाने के लिए शिक्षा व्यवस्था का सुदृढ़ व व्यावहारिक होना नितांत आवश्यक है। नई शिक्षा प्रणाली सैदधांतिक रूप से स्वस्थ, पुष्ट व समृद्ध है परंतु आज आवश्यकता उसे व्यवहार में लाने की है ताकि राष्ट्र का विकास हो। इस शिक्षा नीति को कार्य रूप देने पर ही देश में ज्ञान-विज्ञान की उन्नति व समृद्धि संभव है तभी कवि का यह स्वप्न सार्थक होगा-

देश जो है आज उन्नत

और सब संसार से,

चौका रहे हैं नित्य

सबको नव आविष्कार से,

बस ज्ञान के संचार से

ही बढ़ सके हैं वे वहाँ,

विज्ञान बल से ही गगन

में चढ़ सकें हैं वे वहाँ।