सत्संगति का महत्त्व 
Satsangati ka Mahatva 



'सत्संगति कथय किं न करोति दुंसाम्।' सत्संगति मनुष्य के लिए क्या नहीं करती! वह मूर्खता दूर कर विवेक जागृत करती है। सत्य का सिंचन करती है। उन्नति की दिशा में अग्रसर करती है। पापों से दूर रखती है और कीर्ति को चारों दिशाओं में फैलाती है। बुद्धि तो प्रकृति से प्राप्त होती है, किंतु 'बिनु सत्संग विवेक न होई' अर्थात उचित-अनुचित, पाप-पुण्य का अंतर कर सकने की क्षमता तथा उचित और पुण्य की ओर प्रवृत्त होने की प्रेरणा, सत्संगति से ही प्राप्त होती है। श्रेष्ठ, सज्जन एवं गुणी व्यक्तियों की संगति चंदन के वृक्ष की भाँति होती है, जो अपने निकट के वृक्षों को भी सुवासित बना देता है। महात्मा बुद्ध की सत्संगति पाकर अंगुलिमाल की क्रूरता भी करुणा में परिवर्तित हो गई। सत्पुरुषों का साथ जीवन-पथ को ज्ञान के आलोक से भर देता है। मनुष्य की पहचान उसकी संगति से की जा सकती है

'संत्संगति परमं तीर्थ सत्संग परमं पदम्

तस्मात्सर्व परित्यज्य सत्संग सतत कुरु।'