सदाचार है जीवन का आधार
Sadachar hai Jeevan ka Aadhar


'सुजन समाज सकल गुन खानी। 

करऊँ प्रनाम सप्रेम सुबानी॥ 

सुनि अचरज करै जनि कोइ।

सदाचार महिमा नहिं कोई॥' 

तुलसीदास की ये पंक्तियाँ अक्षरश: सत्य हैं। उच्चपद या धन-संपत्ति लागा का सम्मान देने पर विवश कर सकते हैं. किन्तु जहाँ व्यक्ति स्वेच्छा से झुकता है हदय से आदर करता है, वह है सदाचार। वास्तविकता तो यह है कि व्यक्ति का चरित्र ही उसे मानव बनाता है। मूलत: मानव भी पशु है, किंतु सदाचार से वह देवत्व की ऊंचाइयाँ छूकर मानव-जीवन को सार्थकता प्रदान कर सकता है। सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह, विनय, परोपकार, धैर्य और शालीनता जैसे श्रेष्ठ गणों को अपनाना ही सदाचार है। इसके विपूरीत झूठ, फ़रेब, छल, कपट, परनिंदा, परपीड़ा जैसे अवगुण व्यक्ति को दुराचारी बनाकर पतन के गर्त में डुबो देते हैं।  वेदों में कहा गया है कि आचारहीन व्यक्ति को वेद भी पवित्र नहीं कर सकते। महात्मा कहे जाने वाले व्यक्ति का एक छोटा सा भी निकृष्ट आचरण उसकी सारी विद्वता, सारे त्याग और परोपकार से प्राप्त समान के लिए पर्याप्त है। प्रकांड पंडित, अकूत धन का स्वामी होते हुए भी रावण के दुराचार ने उसे ऐसा कलंकित किया कि कोई अपनी संतान का नाम तक रावण नहीं रखना चाहता। सदाचारी ही यश के भागी होते हैं। सदाचारी के भीतर जो आत्मबल होता है, वह उसके व्यक्तित्व को दिव्य तेजोमय बना देता है, उसके भीतर-बाहर प्रकाश की उज्ज्वल किरणें बिखरा देता है। गुप्त जी ने सत्य ही कहा है-

'सुनो स्वर्ग क्या है ? सदाचार है। 

सदाचार ही गौरवागार है।'