आप 7/57, अशोक विहार, ऐरणाकुलम के उज्ज्वल कुमार हैं। आपका सामान रेलगाड़ी में छूट गया था, जिसे हरिप्रसाद नाम के एक अपरिचित ने आपके घर पहुंचा दिया। आप उनके प्रति कृतज्ञता-पत्र लिखिए।

उज्ज्वल कुमार

7/57, अशोक विहार

ऐरणाकुलम

8 मार्च, 2014

सम्माननीय हरिप्रसाद जी

सादर नमस्कार !

मैं आपको नहीं जानता। आप मुझे नहीं जानते। मेरे और आपके बीच एक ही नाता है-एक भले इनसान और एक कृतज्ञ इनसान का। मैं आपके द्वारा भिजवाई गई अटैची को पाकर हृदय से कृतज्ञ हूँ। मेरा रोम-रोम आपकी शुभकामना कर रहा है।

मैं रेलगाड़ी में भूली हुई अटैची के कारण बहुत परेशान था। मेरे सारे सर्टीफिकेट, मकान के कागजात, कपड़े, पैसे उस अटैची में थे। पिछले तीन दिनों की अथक कोशिश के बाद मेरा मन निराश हो चुका था। मैं, जाने दुनिया में व्याप्त बेईमानी को कितनी बार कोस चुका था। मुझे लगने लगा था कि जैसे इस दुनिया में मक्कारी, ठगी, चोरी और झूठ का बोलबाला है। परंतु आपने मेरी अटैची अपने पुत्र के हाथों भेजकर मेरी सारी निराशा को आशा में बदल दिया। तब से मैं बहुत प्रसन्न, तरोताज़ा और उत्साहित हूँ।

 

मुझे भी भवानीप्रसाद मिश्र की तरह प्रतीत होने लगा है-

क्या हुआ दुनिया अगर मरघट बनी

अभी मेरी आखिरी आवाज़ बाकी है।

हो चुकी इनसानियत की इन्तेहाँ

आदमीयत का मगर आगाज़ बाकी है।

लो तुम्हें मैं फिर नया विश्वास देती हूँ।

हरिप्रसाद जी ! आपकी ईमानदारी ने सचमुच मुझे नया विश्वास दिया है। आप विश्वास रखिए, ज़िंदगी में अगर मैं भी किसी की परेशानी दूर करने के योग्य हो सका तो यह अवसर नहीं चूकूँगा।

मैंने अटैची देख ली है। एक-एक वस्तु यथास्थान सुरक्षित है। आपका हृदय से धन्यवाद ! मेरे योग्य कभी कोई सेवा हो तो निभाने में प्रसन्नता अनुभव करूँगा।

भवदीय

उज्ज्वल