महानगरीय जीवन 
Mahanagariya Jeevan


महानगरीय जीवन और गाँव-कस्बे के जीवन में सबसे बड़ा अंतर रफ्तार का है। महानगरीय जीवन की रफ्तार सुपरसॉनिक जेट विमान जैसी है, तो गाँव-कस्बे का जीवन छुक-छुक गाड़ी या कहीं-कहीं तो बैलगाड़ी की रफ्तार जैसी धीमी है। समय ही धन है'-यह महानगर का सच है। जिसे देखो वह जल्दी में है। घर के भीतर-बाहर भागमभाग है। यहाँ का जीवन घड़ी की सइयों के साथ चलता है। सबह उठकर जल्दी-जल्दी नहा-धोकर, जैसे-तैसे नाश्ता करके दफ्तर या विद्यालय के लिए निकलो तो सड़कों पर ट्रैफ़िक जाम में फंसे रहो। देरी से पहुँचने के तनाव से ग्रस्त रहकर सारा दिन काम में व्यस्त रहो और शाम को फ़िर उसी जंजाल से निकलकर थके-हारे घर पहँचो। ऐसे में किसी से हँसने-बोलने या उनकी समस्याओं को सुनने और समाधान निकालने की ताकत ही कहाँ बचती है! पूरी दिनचर्या मशीनी हो गई है। पड़ोसी-पड़ोसी के संबंध में आत्मीयता कहाँ से पनपे ? पहा तो वे एक दूसरे को जानते तक नहीं। चोरी-हत्या जैसी घटनाएं घट जाती हैं और पड़ोसी को कानोंकान खबर तक नहीं लगता। ऐसे में रिश्तेदारियाँ और दोस्तियाँ महज औपचारिक संबंध बनकर रह गई हैं। हाल तो यह है कि माता-पिता के पास अपने बच्चों तक के लिए समय नहीं है। घरों के साथ दिल भी छोटे होते हैं। बूढ़े माँ-बाप के लिए या तो जगह ही नहीं होती आर यदि होती भी है तो उनके पास दो घडी बतियाने का समय नहीं होता। प्यार, अपनत्व की हरियाली, कंक्रीट के इन जंगलों में कहीं नहीं! सब मजबूर हैं-दोष किसे दें ?  सिक्के के इस नकारात्मक पहलू के अतिरिक्त दूसरा सकारात्मक पहलू भी है। महानगर अवसरों की खान है। गाँवों-कस्बों से आए खाली हाथों को काम मिल जाता ह, भूखा को दो जून की रोटी मिल है। शिक्षा का न केवल स्तर ऊँचा होता है-इच्छा और रुचि के अनुसार चुनाव करने कालए अनेक विकल्प होते हैं। यहाँ एक जूस वाला भी बड़ा उद्योगपति बनने के स्वप्न को साकार कर सकता है। शहरी जीवन में उदारता है, उन्मुक्तता है, जो विकास के लिए आवश्यक है। यह व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वह महानगरीय जीवन के किस पहलू को महत्त्व देता है।