रेलवे-प्लेटफ़ॉर्म का दृश्य 
Railway Platform ka Drishya 

निबंध नंबर:- 01 

रेलवे प्लेटफ़ॉर्म का दृश्य अनूठा होता है। एक चलचित्र जैसा जीवंत, आकर्षक और कौतूहल से परिपूर्ण। यहाँ प्रवेश करते ही आप वहाँ की हलचल का एक हिस्सा बन जाते है। लाउडस्पीकरों पर गाड़ियों की जानकारी की उद्घोषणाओं की आवाज़ वहाँ के शोरगुल में दब-सी जाती है। गाड़ी के आते ही मानो तूफ़ान आ जाता है। बिना आरक्षण वाले डिब्बों के सामने तो ऐसी ठेलमपेल होती है कि उतरने वाला उतर नहीं पाता और चढने वाला चढ नहीं पाता। धक्का-मक्की, गाली-गलौच के बीच महिलाओं और बच्चों का बुरा हाल हो जाता है। इन सबके बीच जेबकतरों का व्यापार बदस्तूर चल रहा होता है। खिसकती गाड़ी पकड़ने के लिए बदहवास दौड़ते लोग, डिब्बे के दरवाजे पर उन्हें चढ़ाने को बढ़े हाथ, जल्दी-जल्दी थमाए जाते सूटकेस, थैले-सभी कुछ रोमांचक होता है। गाड़ी के जाते ही माहौल बदल जाता है। दूसरी गाड़ी पकड़ने आए कुछ यात्री बैंचों पर बैठकर सुस्ताने लगते हैं तो कुछ किताबों की दुकान पर यात्रा की बोरियत दूर करने के लिए किताब या पत्रिका का चयन करने पहुंच जाते हैं। कोई चाय-पकौड़े से भूख शांत कर रहा होता है तो कोई बच्चों के लिए खिलौनों की खरीदारी में मशगूल हो जाता है। यहाँवहाँ घूमते आवारा कुत्ते, भिखारी, जूता पॉलिश करवा लेने की चिरौरी करते छोटे बच्चे भी प्लेटफ़ॉर्म का अभिन्न अंग होते हैं। फ़िर दूसरी गाड़ी लगती है और फिर वही दृश्य दोहराया जाता है-कहीं अपने प्रियजनों का स्वागत करने आए मुसकाते चेहरे होते हैं तो कहीं विदाई के अश्रुओं से छलकती आँखें। रेलवे-प्लेटफ़ॉर्म को यदि 'मिनी भारत' कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।

निबंध नंबर:- 02 

प्लेटफॉर्म का दृश्य 
Platform ka Drishya 

आज सोमवार को मेरे माता-पिता मुझसे मिलने रोहतक आ रहे थे। मैं उन्हें लेने नियत समय पर स्टेशन पहुँच गया। वहाँ पहुँचने पर पता चला कि गाड़ी आधा घंटा देरी से आएगी, अतः मुझे वह समय स्टेशन पर बिताना पड़ा। समय व्यतीत करने के लिए मैंने अखबार खरीद लिया, परंतु स्टेशन पर इतनी अधिक भीड़ थी कि मुझे बैठने की जगह नहीं मिली। स्टेशन पर चारों तरफ कुलियों का आना-जाने लगा हुआ था। यात्रियों के समूह आ रहे थे। कुछ लोग अपना सामान स्वयं लेकर आ रहे थे। प्लेटफॉर्म पर चाय, गरम पकौड़े, गरम पूरी छोले, मिठाई वाला, चने वाला आदि की आवाजें सुनाई दे रही थीं। तभी एक गाड़ी आई और उसमें से काफी यात्री उतरे। उस समय मेले का दृश्य लग रहा था। मेरी गाड़ी आने में काफी समय था। अतः मैंने समोसा व चाय ली। एक जगह पर कुछ यात्री कुली से झगड़ रहे थे तो कुछ उनकी लड़ाई को देख रहे थे। इसी तरह मुझे वहाँ अपना समय बिताना पड़ा। फिर वह गाड़ी आ गई जिसमें मेरे माता-पिता आने वाले थे।