प्लास्टिक वरदान या अभिशाप 
Plastic Vardan ya Abhishap


प्लास्टिक का आविष्कार एक क्रांतिकारी आविष्कार था। यह पदार्थ वज़न में न केवल हल्का है, टिकाऊ और बिजली का सुचालक भी है। अपनी इन्हीं विशेषताओं के कारण इसका प्रयोग जितनी तेजी से बढ़ा शायद ही किसी और पदार्थ का बढ़ा हो। बहुत ही कम समय में उपग्रह, विमान, संयंत्रों के निर्माण से लेकर दैनिक उपयोग की छोटी बड़ी वस्तुओं के निर्माण में इसकी अनिवार्यता का सिक्का जम चुका है। यह पदार्थ न केवल अजर-अमर है-सस्ता भी है। बड़ी-बड़ी इमारतें, वाहन हों या फ़र्नीचर, फ्रिज, मशीन, बर्तन, और थैलियाँ हों हम चारों ओर प्लास्टिक से घिरे हैं। प्लास्टिक की इस दुनिया ने हमारे जीवन को सुख-सुविधापूर्ण बनाया इसमें संदेह नहीं किंतु यही प्लास्टिक अब बवाल-ए-जान बनता जा रहा है क्योंकि यह कृत्रिम रसायनिक पदार्थ मिट्टी या पानी में घुलता-मिलता नहीं इसलिए इसके कूड़े का क्या किया जाए, यह चिंता का विषय बन चुका है। क्या गाँव, क्या शहर, क्या नदियाँ, क्या पर्वत, क्या सागर और क्या जंगल सभी स्थानों में प्लास्टिक की गंदगी और उससे होने वाला प्रदूषण विकराल समस्या बन चुका है। इसके प्रयोग पर नियंत्रण के प्रयत्न अधिक कारगर सिद्ध नहीं हो रहे हैं। इस दिशा में भी इसके आविष्कार के समान ही क्रांतिकारी युद्ध-स्तरीय प्रयत्न की आवश्यकता है।