गाँव में रह रहे पिताजी को अपने शहरी जीवन की जानकारी देते हुए। 

वसंत विला 

सी-स्कीम 

जयपुर 

16 अप्रैल 2014

पूज्य बापू,

सादर चरण स्पर्श! आशा है आप सब कुशलपूर्वक होंगे। यहाँ भी सब कुशल मंगल हैं। आप मेरी ओर से निश्चित रहिए। शहरी जावन का अभ्यस्त होने में थोडा समय तो लगेगा। शेखर भैया मेरा पूरा ध्यान रखते हैं। वे यहाँ दो वर्ष से हैं इसलिए शहर के तार-तरीके अच्छी तरह जानते हैं। आपको जानकर प्रसन्नता होगी कि केवल 20-25 दिनों में ही मैं काफी कुछ सीख गया हूँ। अब में अकेला बस पकडकर स्कूल आता-जाता हूँ। यहाँ सुबह पानी सिर्फ एक घंटे के लिए आता है इसलिए जल्दी-जल्दी नहा-धोकर और घर के लिए घडे-बाल्टियों में पानी भरकर रख लेता हूँ। गाँव का तालाब याद आता है। यहाँ तो एक-एक बूंद साच-समझकर इस्तेमाल करना होता है। यहाँ के थैली के दूध की आदत भी अब पड़ती जा रही है। एक हफ्ते तक तो आधा गिलास पीना तक मुश्किल लगता था। 

अपने गाँव का खाना-पीना, खली हवा याद आती है लेकिन शहर की अपनी खूबियाँ हैं। यहाँ के लोगों के उठने-बैठने, बातचीत रन का सलीका मुझे बहुत अच्छा लगता है। कोई किसी की निजी जिंदगी में दखलअंदाजी नहीं करता। विद्यालय के सभी ध्यापक बहुत लगन से पढ़ाते हैं। पुस्तकालय भी बहुत अच्छा है। घर के पास एक सुंदर बगीचा है। शाम को अक्सर मैं वहाँ घूमने चला जाता हूँ। सब कुछ अच्छा है बस एक कमी है-अपनों की, अपनत्व की। अगले माह से छट्टियाँ हो जाएँगी। माँ से कहना मेरे लिए बेसन के लडू और मठरियाँ बनाकर रखें। माँ के सादर चरण स्पर्श। प्रिय नितिन को शुभाशीष। 

आपका पुत्र 

नलिन