बाढ़ का दृश्य 
Badh ka Drishya 

निबंध नंबर:- 01 

जहाँ देश के कई राज्यों में औसत से कम बारिश हुई, वहीं कुछ राज्यों का जन-जीवन विनाशकारी बाढ़ से तबाह हो गया है। इन्हीं में से एक राज्य है जम्मू एवं कश्मीर। यहाँ झेलम, चिनाब जैसी नदियाँ प्रलय का दूसरा रूप बन चुकी हैं। प्रधानमत्रा नरम मोदी ने जब इस राज्य का हवाई सर्वेक्षण किया, तो उन्होंने माना कि यह राष्ट्रीय आपदा है। बेशक, राहत काम जोरों पर है और हजारों लोगों की जिंदगियाँ बचाई जा चुकी हैं, लेकिन तब भी पूरे राज्य की व्यवस्था खस्ताहाल हो चुकी है। यह भा सराह हाक जवाना ने लोगों की जान बचाने में तत्परता दिखाई है। लेकिन एक संकट बाढ के चले जाने के बाद तब शुरू होगा। खाने-पीने के सामान की किल्लत होगी और इलाके में बीमारी फैलेगी। 


निबंध नंबर:- 02 

बाढ़ का दृश्य 
Badh ka Drishya 

प्रकृति का कल्याणकारी रूप मानव के लिए समृद्धि तथा आनंद का कारण है, तो इसका विनाशकारी रूप अहितकर । कभी-कभी प्रकृति कुपित होकर अपना विनाशकारी रूप भी दिखाती है। वर्षा ऋतु जीवनदायिनी तो है पर अतिवृष्टि भयंकर बाढ़ों का कारण भी बन जाती है। बाढ़ का दृश्य अत्यंत विनाशकारी होता है। हमारा घर गंगा नदी से थोड़ी ही दूरी पर है। पिछले दिनों भयंकर वर्षा हुई तथा दो-तीन दिन तक लगातार होती रही, जिसके कारण गंगा का जलस्तर बढ़ गया और देखते ही देखते उसका पानी खेतों में भर गया। पता चला कि गंगा से निकलने वाली एक नहर जो सिंचाई के लिए बनाई गई थी, का बहत बड़ा भाग टूट गया है तथा उसका जल तेजी से शहर में भर रहा है। रेडियो तथा टी.वी. पर स्थानीय प्रशासन द्वारा अब लोगों को सुरक्षित स्थानों पर चले जाने संबंधी सुचना प्रसारित की जा रही थी। भयभीत लोग अपना कुछ सामान उठाए, अपने बाल-बच्चों को साथ लिए सुरक्षित स्थानों की ओर दौड़े जा रहे थे। देखते ही देखते जलस्तर बहुत बढ़ गया। गरीब लोगों की झोंपड़ियाँ जल मग्न हो गई। उनका सामान जल में तैरने लगा। उन लोगों के बरतन, कपड़े आदि पानी पर तैरते दिख रहे थे। कुछ लोग जान बचाने के लिए ऊँचे-ऊँचे वृक्षों पर चढ़ गए थे। विद्युत और संचार व्यवस्था भी ठप्प होती जा रही थी। हमारे आस-पास के लोग छतों पर शरण लिए हुए थे। जल स्तर बढ़ता ही जा रहा था। शहर का आधा भाग जलमग्न हो चुका था। तभी सेना की नौकाएँ आती दिखाई दीं। वे अपने साथ खाने-पीने का सामान तथा अन्य ज़रूरी चीजें लेकर आए थे। बाढ़ की विनाशलीला देर रात्रि तक चलती रही। तब तक अनेक मकान, पेड़-पौधे ढह चुके थे तथा जान-माल की भारी तबाही हो चुकी थी। प्रातःकाल होते-होते बाढ़ का प्रकोप कम होने लगा, पानी का स्तर घटने लगा तथा एक-दो दिन के बाद गंगा अपने सामान्य स्वरूप में प्रवाहित होने लगी।