भारत में खेलों का भविष्य 
Bharat mein Khelon ka Bhavishya

भारत आज के समय में दुनिया का एक महत्त्वपूर्ण और विकासशील देश है। भारत ने पिछले साठ वर्षों में प्रत्येक क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया है किंतु खेलों में हमारी स्थिति आज भी चिंतन करने योग्य है।

भारत एक आध्यात्मिक देश है। यह ऋषि-मुनियों की भूमि है। यहाँ महत्त्व ज्ञान को दिया गया। आज भी भारत के माता-पिता अपने बच्चों को इंजीनियर, डॉक्टर, प्रोफेसर, वकील, पत्रकार आदि बनाना चाहते हैं। खिलाड़ी कोई नहीं बनाना चाहता। यदि कोई बच्चा खेलों में अधिक रुचि लेता पाया जाए तो उसे माता-पिता से डाँट सुनने को मिलती है। भारत के लोग अब भी खेलों में भविष्य नहीं मानते। यही कारण है यहाँ खेलों का विकास नहीं हो पाता। खेल-जगत में भारत का स्थान निराशाजनक है, 120 करोड़ आबादी वाला देश किसी भी खेल में चैंपियन नहीं है। आज क्रिकेट में भारत ने दबदबा तो दिखाया है किंतु यह स्थायी नहीं है। हॉकी में कभी हमारा देश विश्व चैंपियन होता था। इस बार हम ओलंपिक के लिए क्वालीफाई भी नहीं कर पाए। टेनिस, लॉन टेनिस, कुश्ती, तैराकी, मुक्केबाजी, फुटबॉल, बैडमिंटन, बॉलीबॉल किसी भी खेल में हमारा नाम तक नहीं है। 2008 के बीजिंग ओलंपिक में जहाँ लगभग 1000 पदक दाँव पर थे, भारत ने केवल तीन पदक प्राप्त किए। हमने 302 खेलों में से केवल 12 खेलों में ही भाग लिया। इसके लिए न तो हमारी सरकार चिंतित है, न समाज और न स्वतंत्र अकादमियाँ । हमारा यह प्रयास होना चाहिए कि नए-नए इंजीनियरिंग कॉलेज, मैडिकल कॉलेज, मैनेजमेंट कॉलेज खुलने के साथ-साथ, अकादमियाँ और प्रशिक्षण संस्थान भी खोले खाएँ। वहाँ खेल-आधारित पाठ्यक्रम हो। वहाँ नियुक्त स्टाफ को सम्मानपूर्वक धन दिया जाए। शिक्षा में खेलों को अनिवार्य अंग बनाया जाए। बच्चों के प्रमाण-पत्र और चरित्र में शिक्षा-ज्ञान। खेल और कला तीनों के अंक निर्धारित होने चाहिए। ऐसा होने पर बच्चों के माता-पिता बच्चों को खेलों के लिए प्रोत्साहित करेंगे। इसके अतिरक्ति जिस प्रकार संगीत, नाटक, नृत्य, फैशन आदि को प्रोत्साहन देने के लिए बनी संस्थाएँ प्रतियोगिता कराकर पुरस्कार, सम्मान या प्रदर्शन के अवसर प्रदान करती हैं, उसी प्रकार खेलों के लिए भी संस्थाएँ आगे आयें। खेलों को लेकर अभी तक भारतवासियों का रवैया बहुत उत्साहप्रद नहीं है। अभी भारत को खेलों के विकास के लिए और कुछ वर्षों तक प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। सरकार और देशवासियों को खेल और खिलाड़ियों के प्रति सकरात्मक रुचि दिखानी होगी तभी भारत में खेलों को उचित स्थान प्राप्त हो सकेगा।