काश! मैं उड़ सकता 
Kash mein Ud Sakta

मानव मन कल्पना के पंखों पर सवार होकर अनेक प्रकार की कल्पनाएँ करने लगता है। कभी-कभी मेरे मन में प्रश्न उठता है कि मेरे पास भी पंख होते, मैं भी उड़कर सारी दुनिया में घूम सकता। मेरे पास पक्षियों की तरह पंख होते तो यह संभव हो सकता। वास्तव में पक्षियों की दुनिया कितनी स्वच्छंद होती है, कितनी अनोखी, मस्ती से भरपूर आसमान में उड़ते रंग-बिरंगे पक्षी सदैव मेरा मन लुभाते रहे हैं। मेरे घर के बरामदे में एक बुलबुल अकसर आया करती है। जब भी मैं उसे देखता हूँ तो सोचता हूँ कि मैं भी पक्षी बन जाऊँ तो कितना अच्छा हो। दूर आसमान में उड़ते हुए मैं बादल को छूने की कोशिश करता। दिन भर उड़ते-उड़ते जब मैं थक जाता तो किसी तालाब के किनारे बैठकर अपनी भूख-प्यास मिटाता। मैं कभी भी शहर में रहने वाली चिड़िया बनना पसंद नहीं करता। इतने प्रदूषण में रहने से क्या फायदा। मैं तो जंगल में रहता। शहरों में तो बस मैं तब आता जब बिजली के बड़े-बड़े तारों पर झूलने का मेरा मन करता। बँधकर रहना मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लगता। मैं हमेशा सावधान रहता कि कोई मुझे पकड़ न ले जाए। झरने का मीठा पानी, हरे-भरे पेड़ मुझे सदा आकर्षित करते हैं। कितनी अद्भुत दुनिया होती। चारों ओर बिखरी प्रकृति, न पढ़ाई की चिंता, न किसी की डाँट का डर, कोई तनाव नहीं, बस अपनी मर्जी से उड़ना-घूमना और बस घूमना और रात होते ही आराम से अपने नीड़ में विश्राम करना।