पर उपदेश कुशल बहुतेरे
Par Updesh Kushal Bahutere
निबंध # 1
दूसरों को उपदेश देना बहुत ही सरल है, परंतु उन उपदेशों को व्यवहार में लाना उतना ही कठिन है। संसार में कुछ लोगों का कार्य दूसरों को उपदेश देना है, परंतु वे कभी उस पर अमल नहीं करते। दूसरों को ईमानदारी, नैतिकता, कर्मठता, सदाचार आदि पर लंबे-लंबे व्याख्यान दिए जा सकते हैं, परंतु उन पर आचरण करना दूसरी बात है। यदि उपदेशक स्वयं भी उस कार्य को आदर्श रूप में दूसरों के सामने करके दिखाए तब उसका प्रभाव भाषण देने से कहीं अधिक पड़ेगा। लोग उपदेशक का अनुसरण करने में प्रसन्नता का अनुभव करेंगे। एक बार स्वामी रामतीर्थ ने सभा में उपस्थित लोगों से पूछा कि ऐसी वस्तु कौन-सी है जिसे हर कोई देने को तैयार रहता है, परन्तु उसे लेता कोई नहीं है? कोई इसका उत्तर नहीं दे सका। तब उन्होंने स्वयं ही इसका उत्तर दिया। वास्तविक जीवन में यह सत्य है कि हम दूसरों को अनेक प्रकार के उपदेश देते हैं, परंतु स्वयं उनका पालन नहीं करते। अतः हमारा उपदेश केवल पांडित्य-प्रदर्शन रह जाता है। यह उक्ति तुलसीदास ने मेघनाद-वध के समय रावण द्वारा दिए गए नीति के उपदेश की निरर्थकता पर व्यक्त की है।
पर उपदेश कुशल बहुतेरे
Par Updesh Kushal Bahutere
निबंध # 2
यह ऐसा संसार है जिसे अपनी बुराई नज़र नहीं आती पर दूसरों के दोषों को गहराई से देखता है। जब भी उसे उसकी बराई की याद कराई जाती है तो वह अपने को साफ बचा लेता है पर दूसरे के सर अपने दोप मढ़ देता है। वह स्वयं कोई काम नहीं करता पर दूसरे को उपदेश देना अपना परम धर्म समझता है।
अपने दोष व्यक्ति को राई के समान दिखाई देते हैं लेकिन दूसरों के पहाड़ की तरह दिखाई देते हैं। कदाचित गोस्वामी तुलसीदास ने ऐसे ही व्यक्तियों के बारे में कहा है कि पर उपदेश कुशल बहुतेरे। अभिप्राय यह है कि दूसरों को उपदेश देन में ही लोग अपनी कुशलता समझते हैं।
सज्जन अपने दोषों पर पहले दृष्टिपात करता है लेकिन दुर्जन के दोषों की कभी गिनती नहीं करता। सज्जन अपनी बराई को सब के समक्ष स्वीकार कर लेता है लेकिन दुर्जन अपनी गलती को नजरअंदाज करता है, रात-दिन दूसरों के दोष निकालने में लगा रहता है। अगर कोई व्यक्ति कोई काम कर रहा है तो दुर्जन हो ही नहीं सकता कि उसे उपदेश न दे। चाहे उसे वह काम आता हो या नहीं, पर अपनी राय दिए बिना मानेगा नहीं।
होना यह चाहिए कि अगर कोई व्यक्ति कोई काम कर रहा है तो उसकी प्रशंसा करनी चाहिए ताकि उक्त व्यक्ति उस कार्य को और अधिक मन लगाकर करे और उसमें सफलता प्राप्त करे। पर जिसके सामने व्यक्ति कोई काम करेगा, उसके संबंध में तत्काल अपनी सलाह दे देगा। एक बार एक व्यक्ति कार चलाना सीख रहा था। दूसरा व्यक्ति आया और उसे सलाह देने लगा कि इस तरह चलाओ, इस तरह नहीं। वह आदमी झल्ला गया और उससे कह बैठा, चलो तुम चलाओ। वह व्यक्ति कार नहीं चला पाया। अपना-सा मुंह लेकर वहां से चला गया। तब जाने वाले व्यक्ति से उक्त व्यक्ति ने कहा, पर उपदेश कुशल बहुतेरे।
0 Comments