ऋतुओं की रानी: वर्षा ऋतु
Rituo ki Rani Varsha Ritu
गरमी से जब धरती त्राहि-त्राहि करने लगती है, तब मेघ आकर धरती को शांति प्रदान करते हैं। मेघों की झड़ी से जंगल में मंगल हो जाता है। जिधर देखो, उधर हरियाली दिखाई पड़ती है। वर्षा से सभी प्राणी राहत की साँस लेते हैं। छोटे-छोटे नदी-नाले स्वयं को नहीं संभाल पाते और कलकल के गीत सुनाते चलते हैं। मोर मेघों को देखकर अपना गीत गाते हैं और नृत्य करते हैं। वर्षा के जल में मेढकों की टर्र-टर, झिंगुरियों की झंकार आदि से रात्रि आनंदमयी हो जाती है। इसी मौसम के बीच तीज का त्योहार आता है। पेड़ों पर झूले डलते हैं। स्त्रियाँ गीत गाती हैं। सावन की रिमझिम में हदय हिलोरें लेने लगता है। कभी आसमान में इंद्रधनुष के अद्भुत रंग मन मोह लेते हैं। कहीं-कहीं मेले लगते हैं। वर्षा से किसानों के सपने साकार होने लगते हैं। वे हल जोतते हुए पुरवैया का राग अलापने लगते हैं। मक्का, ज्वार, बाजरे की फसलें देखकर कृषक फूला नहीं समाता। बादलों की गड़गड़ाहट, बिजली की चमक, बरसती बूंदें आदि न जाने कितने कवि हृदयों को जागृत कर जाती हैं। सचमुच वर्षा ही ऋतुओं की रानी है।
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