आदर्श विद्यार्थी 
Aadarsh Vidyarthi


विद्यार्थी शब्द 'विद्या + अर्थी' शब्दों के योग से बना है जिसका अर्थ है विद्या प्राप्त करने का इच्छुक या अभिलाषी व्यक्ति। जब कोई बालक या व्यक्ति नियमित रूप से विद्या प्राप्त कर रहा होता है तो उसे विद्यार्थी कहा जाता है। प्राचीन भारत में बालक को गुरुकुल या आश्रम में शिक्षा दी जाती थी। इन स्थानों पर विद्वान तथा ऋषि-मुनि शिक्षक होते थे। उनका कार्य इस तरह समाज की सेवा करना था। उनके अधीन रहकर ब्रह्मचर्य व्रत धारण कर युवक पच्चीस वर्ष की आयु तक विद्या ग्रहण कर गृहस्थ में प्रवेश करता था। लेकिन समय बदलने के साथ-साथ आज विद्यार्थी नए ढंग से नए वातावरण में शिक्षा ग्रहण कर रहा है।


विद्यार्थी का जीवन मनुष्य जीवन की आधारशिला है। उसे आरम्भ में जिस प्रकार की शिक्षा मिलेगी, जिस प्रकार का उसका वातावरण होगा, वह उसी के अनुसार ढलेगा। उसके उज्जवल भविष्य के लिए उसका विद्यार्थी जीवन आदर्श होना चाहिए। शिक्षाविहीन व्यक्ति पशु के समान है। पशुत्व से मनुष्यता तक पहुंचने के लिए हर उच्च आदर्श उसको प्रदान करना माता-पिता, समाज तथा सरकार का कर्तव्य है। छात्र का जीवन तपस्या का जीवन है। इस जीवन में ही वह शारीरिक, मानसिक तथा आत्मिक गुणों का विकास करता है। जीवन के आरम्भ में यदि वह अनुशासन के नियमों का पालन करता है तो उसका जीवन अवश्य सुखमय होगा। अत: आदर्श विद्यार्थी बनने के लिए उसके अन्दर आज्ञा पालन, अनुशासन एवं सद्बुद्धि अवश्य होनी चाहिए।


माता-पिता, गुरुजनों और अपने से बड़े व्यक्तियों का सम्मान करना तथा उनकी आज्ञा के अनुसार चलना अच्छे विद्यार्थी का कर्तव्य है। विद्यार्थी को एकाग्रचित्त होकर विद्या का अध्ययन करना चाहिए। उसे हर स्थान पर संयम से काम करना चाहिए। कक्षा अथवा छात्रावास में, खेल के मैदान में अथवा भोजन के स्थान पर उसके संयम की परीक्षा होती है। उसका जीवन नियमित होना चाहिए। उसे जिज्ञासु होना चाहिए। प्रत्येक नई चीज को सीखने का उसे चाव होना चाहिए। 

आदर्श विद्यार्थी को सादा जीवन तथा उच्च विचार के सिद्धान्त का पालन करना चाहिए। उसे अपने साथियों के साथ मित्रता का व्यवहार करना चाहिए। पढ़ने के साथ-साथ अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए उसे एक अच्छा खिलाड़ी होना चाहिए। आदर्श विद्यार्थी को मधुरभाषी, स्वावलंबी तथा सदाचारी होना चाहिए। उसे किसी के साथ झूठ, छल-कपट का व्यवहार नहीं करना चाहिए। उसे समय और धन का मूल्य समझना चाहिए। आदर्श विद्याथी को कठोरता से अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए। परीक्षा में केवल अपनी मेहनत के बल पर उत्तीर्ण होना चाहिए।


छात्र या विद्यार्थी राष्ट्र की संपत्ति है। देश की उन्नति उन्हीं पर निर्भर है। यही कारण है कि इन्हें देश का कर्णधार भी कहा जाता है। छात्र जीवन में कुछ कर डालने की भावना ही उनमें जोश भरती रहती है। इस जोश को कम करने के लिए अनुभव की आवश्यकता होती है। अब तक देश के जितने भी महान नेता हुए हैं वे सब अपनी छात्र अवस्था से ही बनने शुरू हो गये थे। छात्रों में सामर्थ्य होती है यदि उसका उचित मार्गदर्शन कर दिया जाए तो वे निश्चित ही अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेते हैं। माता जीजाबाई के उपदेशों का ही फल था कि साधनहीन शिवाजी ने देखते-देखते एक साम्राज्य का निर्माण कर डाला। गुरु गोविन्द सिंह ने खालसा पंथ की नींव डाली, महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू भी छात्र अवस्था से ही देश सेवा में जुट गये।


विद्यार्थी जीवन किसी भी मनुष्य के जीवन की नींव होता है। यदि नींव अभी से मजबूत होगी तो भविष्य भी सुरक्षित तथा सुदृढ़ होगा। यह कहने से अभिप्राय है कि विद्यार्थी को अपने इस समय में इतनी अधिक मेहनत कर लेनी चाहिए कि फिर भविष्य में उसे कष्ट न भोगना पड़े। जो बालक विद्यार्थी जीवन मौज-मस्ती में गुजार देता है उसे आजीवन परिश्रम करना पड़ता है। इसलिए विद्यार्थियों को समय का सदुपयोग करते हुए कड़ी मेहनत कर अपने भविष्य के जीवन को सुरक्षित बनाने का प्रयत्न करना चाहिए।


निबंध नंबर :- 02


आदर्श विद्यार्थी 
Aadarsh Vidyarthi

विद्यार्थी अर्थात् विद्या का अर्थी। विद्या अर्जन जिसका एकमात्र कार्य हो। आदर्श विद्यार्थी वह है जो पूरी ईमानदारी तथा परिश्रम से विद्या अध्ययन के कार्य में लगा रहता है। विद्यार्जन में चाहे कितने भी कष्ट उठाने पड़ें, आदर्श विद्यार्थी पीछे नहीं हटता। कहा भी गया है कि सुख चाहने वाले को विद्या का त्याग कर देना चाहिए तथा विद्या चाहने वाले को सुख का त्याग कर देना चाहिए। अध्ययन एक तपस्या है, इसलिए विद्यार्थी का जीवन फूलों की सेज नहीं होता। उसे कठिनाइयों में तप कर अपना जीवन सँवारना होता है। हमारे देश में विद्यार्थी के लिए ब्रह्मचर्य का पालन अनिवार्य माना गया है क्योंकि सुख-भोग एवं मौज-मस्ती में लिप्त रहने वाला कभी भी एक आदर्श विद्यार्थी नहीं बन सकता। आदर्श विद्यार्थी के लिए आवश्यक है कि वह अपने मन-मस्तिष्क तथा अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण रखे और केवल अध्ययन के लिए प्रयासरत रहे। विद्यार्थी के पाँच गुण बताए गए हैं। काकचेष्टा अर्थात कौए की तरह सदैव प्रयत्नशील रहना, बकोध्यानम् अर्थात बगुले की तरह ध्यान लगाए रहना, श्वाननिंद्रा अर्थात कुत्ते की तरह बहुत कम सोना, अल्पाहारी-कम भोजन करने वाला और गृहत्यागी अर्थात घर और घर के सदस्यों के प्रति आसक्ति न रखना। उपर्युक्त पाँच लक्षणों से युक्त व्यक्ति ही आदर्श विद्यार्थी हो सकता है। आदर्श विद्यार्थी के लिए पुस्तक ही मित्र हैं और अध्यापक देवता। आदर्श विद्यार्थी परिश्रमी होता है तथा शिष्टाचार का पालन भी उसके लिए अनिवार्य है। सत्यवादी होना तथा माता-पिता एवं गुरुजनों का आदर करना भी आदर्श विद्यार्थी के गुणों में समाहित है। आदर्श विद्यार्थी होना यद्यपि कठिन है परन्तु प्रयल करने पर असंभव नहीं। आदर्श विद्यार्थी कुल एवं राष्ट्र के लिए अनमोल हैं।