दहेज का दानव
Dahej ka Danav


देश में व्याप्त दहेज की कुप्रथा का स्वरूप अत्यंत प्राचीन है। प्राचीनतम धर्मग्रंथ मनुस्मृति में उल्लिखित है, “माता-पिता कन्या के विवाह के समय दान भाग के रूप में धन-संपत्ति व गाएं आदि कन्या को प्रदत्त कर वर को समर्पित करें।" पर इस संदर्भ में स्मृतिकार मनु ने इस बात का कोई उल्लेख नहीं किया कि यह भाग कितना होना चाहिए। कालांतर में स्वेच्छा से कन्या को प्रदत्त किया जाने वाला धन वरपक्ष का अधिकार बन गया और बाद में इस प्रथा ने एक कुप्रथा या बुराई का रूप धारण कर लिया। 

दहेज प्रथा आज के मशीनी युग में एक दानव का रूप धारण कर चुकी है। यह ऐसा काला सांप है जिसका डसा पानी नहीं मांगता। इस प्रथा के कारण विवाह एक व्यापार प्रणाली बन गया है। यह दहेज प्रथा हिन्दू समाज के मस्तक पर एक कलंक है। इसने कितने ही घरों को बर्बाद कर दिया है। अनेक कुमारियों को अल्पायु में ही घुट-घुट कर मरने पर विवश कर दिया है। इसके कारण समाज में अनैतिकता को बढ़ावा मिला है तथा पारिवारिक संघर्ष बढ़े हैं। इस प्रथा के कारण समाज में बाल-विवाह, बेमेल- विवाह तथा विवाह-विच्छेद जैसी अनेकों कुरीतियों ने जन्म ले लिया है।


दहेज की समस्या आजकल बड़ी तेजी से बढ़ती जा रही है। धन की लालसा बढ़ने के कारण वरपक्ष के लोग विवाह में मिले दहेज से संतुष्ट नहीं होते हैं। परिणामस्वरूप वधुओं को जिन्दा जला कर मार दिया जाता है। इसके कारण बहुत से परिवार तो लड़की के जन्म को अभिशाप मानने लगे हैं। यह समस्या दिन-प्रतिदिन विकराल रूप धारण करती जा रही है। धीरे-धीरे सारा समाज इसकी चपेट में आता जा रहा है।


इस सामाजिक कोढ़ से छुटकारा पाने के लिए हमें भरसक प्रयत्न करना चाहिए। इसके लिए हमारी सरकार द्वारा अनेकों प्रयत्न किए गए हैं जैसे 'हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम पारित करना। इसमें कन्याओं को पैतृक सम्पत्ति में अधिकार मिलने की व्यवस्था है। दहेज प्रथा को दण्डनीय अपराध घोषित किया गया तथा इसकी रोकथाम के लिए 'दहेज निषेध अधिनियम' पारित किया गया। इन सबका बहुत प्रभाव नहीं पड़ा है। इसके उपरान्त विवाह योग्य आयु की सीमा बढ़ाई गई है। आवश्यकता इस बात की है कि इसका कठोरता से पालन कराया जाय। लड़कियों को उच्च शिक्षा दी जाए, युवा वर्ग के लिए अन्तर्जातीय विवाह संबंधों को बढ़ावा दिया जाए ताकि वे इस कुप्रथा का डट कर सामना कर सकें। अतः हम सबको मिलकर इस प्रथा को जड़ से ही समाप्त कर देना चाहिए तभी हमारा समाज प्रगति कर सकता है।