महावीरप्रसाद द्विवेदी
Mahavir Prasad Diwedi


परिचय-आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी का जन्म वैशाख शुक्ल ४, संवत् १९२१ को रायबरेली जिले के रामसहाय दुबे के यहाँ हुआ था। आर्थिक कठिनाइयों के कारण आप अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर सके। आपने घर पर ही संस्कृत और उर्दू का ज्ञान प्राप्त किया। कुछ समय बाद आपने पंद्रह रुपए मासिक पर रेलवे में नौकरी कर ली। यहीं पर उन्नति करते हुए आप हेडक्लर्क बन गए और अनेक लोगों के संपर्क से यहीं आपने गुजराती, मराठी आदि का ज्ञान प्राप्त किया। आप सच्चे और ईमानदार व्यक्ति थे। अपनी सचाई के कारण आपने रेलवे से पदत्याग कर दिया। बाद में आप 'सरस्वती' पत्रिका के संपादक बन गए। सत्रह वर्ष तक पत्रिका का संपादन कर आपने हिंदी साहित्य की अद्वितीय सेवा की। आपका सबसे बड़ा काम हिंदी भाषा का सुधार है। आपने कविता में खड़ीबोली की प्रतिष्ठा कराकर काव्य और गद्य की भाषा के अंतर को दूर किया।


रचनाएँ-आपने 'कुमारसंभव', 'महाभारत', 'स्वाधीनता', 'रघुवंश', 'शिक्षा', 'बेकन विचारमाला' आदि ग्रंथों का हिंदी में अनुवाद किया और 'संपत्तिशास्त्र', 'काव्य मंजूषा', 'आलोचनांजलि', 'रसज्ञ रंजन', 'विदेशी विद्वान्', 'सुकवि संकीर्तन', 'साहित्य संदर्भ', 'साहित्य सीकर' आदि ग्रंथों की रचना की।


द्विवेदीजी के कार्य-भारतेंदु काल में भाषा व्याकरणसम्मत नहीं थी। इस युग के लेखकों को एक ही शब्द के अनेक प्रयोग करने में कोई हिचक नहीं होती थी। शब्दों पर प्रांतीयता की मुहरं अधिक लगी हुई थी। द्विवेदीजी ने भाषा को व्याकरणसम्मत बनाकर विरामचिह्नों की एकरूपता स्थापित की। आपने भाषा की शुद्धता और एकरूपता पर बल दिया और विषयों की संकुचितता समाप्त कर अनेक नए विषयों पर निबंध लिखे तथा पुरातन संदर्भो से निबंध साहित्य को पुष्ट किया।


आलोचना-क्षेत्र में आपने गंभीरता का समावेश किया। व्रजभाषा के प्रेम और शृंगार से कविता को निकालकर उसे राष्ट्र और समाज के क्षेत्र में प्रतिष्ठित किया। भारतेंदु युग में आलोचना का काम था कवि या लेखक के गुण-दोष देखना। उसके पीछे कोई साहित्यिक सिद्धांत नहीं था। द्विवेदी युग में आकर सिद्धांतों की स्थापना हुई और श्रेष्ठ समालोचनाएँ होने लगीं। निबंधकार द्विवेदी-आपने परिचयात्मक, गवेषणात्मक और आलोचनात्मक निबंध लिखे। परिचयात्मक निबंधों में वर्णनात्मकता है और पाठकों का मनोरंजन भी होता है। इनकी भाषा चलती, मुहावरेदार और व्यावहारिक है।

गवेषणात्मक निबंधों का विषय सामान्य रूप से अतीत से संबद्ध रहा है। इनमें 'आर्यों का निवास-स्थान' जैसे खोजपूर्ण निबंध लिखे गए हैं। इनमें संस्कृतनिष्ठ भाषा का प्रयोग हुआ है। आलोचनात्मक निबंध साहित्यिक विषयों पर लिखे गए हैं। इन निबंधों में आपका सिद्धांत प्रतिपादक रूप उभरकर सामने आया है। 'हिंदी कालिदास की आलोचना' ऐसे ही निबंधों में आती है। समालोचक द्विवेदी-समालोचना क्षेत्र में आपका स्थान महत्त्वपूर्ण है। आपने निष्पक्ष एवं सिद्धांतवादी समीक्षा की है। आपकी समीक्षा के व्यावहारिक और निर्णयात्मक दो रूप हैं। वस्तुत: हिंदी भाषा के निर्माता के रूप में आपका कृतित्व सर्वोच्च है। आपके किसी अन्य रूप से यह रूप अत्यधिक समृद्ध और श्रेष्ठ है।