टेलीविज़न
Television


प्रस्तावना-" टेलीविजन तो सिर्फ चलता हुआ चित्र है, पर आज के युग में यही चित्र, बना रहा चरित्र है। मनोरंजन, शिक्षा, खेल-कूद सब कुछ यह दिखलाता है,21वीं सदी में तो, 'राम जी का भी कार्टून आता है।" क्या आपके घर 'केबल लगा है? अरे नहीं! वो मेरे बेटे का इम्तेहान चल रहा है। पर इम्तेहान से 'केबल टीवी का संबंध? टीवी नहीं देखेगा तो उसका सामान्य ज्ञान कमजोर हो जाएगा। आज तो टीवी पर तरह-तरह के प्रश्न-उत्तर संबंधी और वार्ताः के कार्यक्रम भी आते हैं। विज्ञान क्षेत्र में तो यह सबसे अधिक लाभकारी है।


मनोरंजन के क्षेत्र में - जब कभी भी बोरियत का अनुभव हो, बस एक बटन दबाइये, देश के कोनों में विख्यात महासंतों के प्रवचन सुनिये। या फिर भक्ति-गीत और लोक गीत का आनन्द लीजिए। अब आजकल की युवा पीढ़ी की बात हो, तो हम अपने मनपसन्द गानों का भी आनन्द ले सकते हैं। वाह! क्या बात है। समाचार पत्रों को पढ़ने की क्या आवश्यकता है? चित्रों के साथ खबर देखने का मज़ा ही कुछ और है। सास-बहू के सीरियल, फिल्में, कार्टून, सब कुछ तो है यहाँ पर। टी0वी के बिना सब कुछ अधूरा है। अब सोंचिए सिडनी में होते क्रिकेट मैच का सीधा प्रसारण हम भारत में देखते हैं। है न गज़ब बात?


समाचार और शिक्षा - यहाँ केवल समाचार ही नहीं उससे जुड़ी अन्य जानकारियाँ, जैसे घटना स्थल का वीडियो, चित्र, देश-विदेश में हो रहे रंगा-रंग कार्यक्रम आदि का जायजा लेने को भी मिलता है। फिर अगर दिल्ली में हो रहे, 'कवि-सम्मेलन का लुत्फ उठाना हो तो भला दिल्ली क्यों जायें ? केबल टी०वी पर, "डिस्कवरी, 'नेशनल जॉगरफिक', 'एनिमल पलानेट' जैसे कई चैनल उपलब्ध हैं, जिन पर देश-विदेश में हो रही नई नई कृतियों की जानकारी मिलती है।


समाज में भाईचारा - टीवी पर कुछ ऐसे कार्यक्रम भी आते हैं, जो धर्मों के बीच भाईचारे का प्रतिपादन करते हैं। हमें एक जुट होने की शिक्षा देते हैं। हमारे धर्मों से जुड़े गीत, आरती, पूजा-पाठ आदि अनुष्ठानों का भी प्रसारण होता है।


आधुनिक टीवी


"टीवी पर भी चढा है आधुनिकता का रंग,

नामुकिन है टीवी देखना, घर परिवार के संग।” आज पश्चिमी आधुनिकता इस कदर सवार हो चुकी है की, कार्यक्रमों का स्तर गिरता जा रहा है। कुछ कार्यक्रम तो घर परिवार के साथ देखने योग्य भी नहीं हैं। चाहे वो 'लफ्टर चैलेंज' के लतीफे ही क्यों न हो। या फिर सीरियलों को ही देख लीजिए, एक आदमी 7-8 बार शादी करता है। ये भी कोई सीरियल है। आपस में ही लड़ाई लगवाना तो कोई इनसे सीखे। अभिनेत्रियों ने तो कपड़े कम पहनने की ही ठान ली है। फिर बच्चे मानते भी तो नहीं हैं। ज्यादा टी0वी0 देखने से आंखों की दृष्टि भी कमजोर हो जाती है। छात्र पढ़ाई कम टी0वी0 अधिक देख रहे है। कुछ कार्यक्रम बच्चों को गलत राह दिखा रहे हैं।