लातों के भूत बातों से नहीं मानते 
Lato ke Bhoot Bato se Nahi Mante

इस कहावत से हमें यह जानने को मिलता है कि एक बच्चे को सही रास्ते पर लाने के लिए शारीरिक सजा देनी आवश्यक होती है। किन्तु प्रश्न यह उठता है कि क्या इस प्रकार की सजा देना ठीक है या नहीं। बच्चे कोई अपराधी नहीं होते। यह गलत है तथा इस से बच्चे पर मानसिक असर भी पड़ता है। शारीरिक सजा बच्चे को सुधारने का सही इलाज नहीं है। इस से बच्चे के मासूम शरीर पर बुरा असर पड़ता है। उन्हें शारीरिक कष्ट की आदत पड़ जाती है तथा वे सख्त चमड़ी लेकर बड़े होते हैं। इस तरह की सजा एक बच्चे पर जबरदस्ती अपनी इच्छा थोपने के लिए इस्तेमाल की जाती है जिससे बच्चे के दिल पर बुरा असर पड़ता है। उन पर शारीरिक बल का प्रयोग कर हम उनकी कमजोरी का फायदा उठाते हैं। यदि वे भी शारीरिक रूप से ताकतवर हों तथा वापिस हमला करने में सक्षम हों तो कोई उन पर इस तरह की जबरदस्ती करने की हिम्मत नहीं करेगा। यह उनकी असमर्थता है कि हम इस प्रकार उनका शोषण करते हैं। इसलिए शारीरिक सजा देने के स्थान पर हमें उन्हें समझा कर सही रास्ते पर लाना चाहिए।