खरगोश तथा कछुआ
The Hare and the Tortoise
एक बार एक कछुआ था। वह बहुत धीरे-धीरे चलता था। एक दिन वह एक खरगोश के सामने आ गया। खरगोश को अपनी तेजी पर घमण्ड था। उसने कछुए की धीमी गति का मजाक उड़ाया।
कछुआ बहुत बुद्धिमान था। वह उदास नहीं हुआ। उसने खरगोश से दौड़ लगाने को कहा। उन्होंने दिन निश्चित किया। दौड़ का दिन आ गया। खरगोश तेजी से भागने लगा। वह जल्दी ही कछुए से बहुत दूर निकल गया। उसने देखा कि कछुआ बहुत पीछे रह गया है। उसने कुछ देर आराम करने का सोचा। वह पेड़ के नीचे लेट गया तथा उसे नींद आ गई।
कछुआ धीरे-धीरे चलता रहा। वह रास्ते में कहीं भी न रुका। उसने देखा कि खरगोश एक पेड़ के नीचे सो रहा है। वह चुप-चाप वहां से गुजर गया। वह चलता रहा तथा जीत के अंत तक पहुंच गया। कुछ देर बाद खरगोश उठ गया। वह तेजी से भागा। जैसे ही वह अन्तिम रेखा तक पहुंचा उसने देखा कि कछुआ पहले से ही वहां खड़ा था। खरगोश बहुत शर्मिन्दा हुआ।
शिक्षा : अभिमानी का सर नीचा।
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