अच्छे स्वास्थ्य के लाभ 
Acche Swasthya ke Labh


जिसका शरीर और मन अपने काम को तत्परता से करने के बावजूद थके-उकताये नहीं, बल्कि उसमे इसके बाद भी इतनी शक्ति बची रहे कि वह स्वयं प्रसन्न हो और प्रसन्नतापूर्वक दूसरे असमर्थों की सहायता कर सके, उनके काम निबटाने में हाथ बटा सके-उसे ही हम कहेंगे 'स्वस्थ' और उसकी इस सामर्थ्य को कहा जाएगा 'स्वास्थ्य'।

भरे बोरे की तरह मोटा हो जाना अच्छे स्वास्थ्य का लक्षण नहीं है, न ऐसी दुर्बलता ही जिसे पछुआ हवा का एक झोंका पीपल के सूखे पत्ते की तरह उड़ाकर कहीं दूर ले जाय। एक कोस चले तो हाँफने लगे, घंटेभर पढ़े तो सिर में चकर आ जाय, अपना मामूली सामान दस कदम ढोने में कुली के बिना काम न चले-उसे हम स्वस्थ कदापि न कहेंगे।

स्वास्थ्य मनुष्य की प्रथम सम्पत्ति है-जैसा इमर्सन ने कहा है। वह ईश्वर के लुभावने वरदानों में सर्वोत्तुम है। वह अमीरों के लिए वरदान है, गरीबों के लिए सम्पति। उसको किसी भी मुल्य पर खरीदा नहीं जा सकता उसके बिना संसार भोग सम्भव नहीं है। जॉनसन के शब्दों में-

Ohealth ! health ! the blessing of the rich ! the riches of the poor!

Who can buy thee at too dear it rate, since there is no enjoying this world without it!

पत्थर-सी जिसकी मांसपेशियाँ हों, लोहे-सी भुजाएँ हो, जिसकी नस-नस में बिजली की तरह लहर दौड़ती रहती हो, उसे हम खस्थ कहेंगे वह चाहे तो अपनी पुष्ट भुजाओं से पर्वत को झुका दे, सागर की उन्मत्त ऊर्मियों को कैंपा दे तथा तूफान की गति मोड़ दे, किन्तु रुग्ण व्यक्ति अपनी ही देह पर भनभनाती मक्खियाँ तक नहीं उड़ा सकता, अन्य बातें तो दूर।

स्वस्थ व्यक्ति की भुजाएँ वटवृक्ष की तरह निराश्रयों को आश्रय देती हैं, उसके विचार सघन घन की तरह फैलकर अमिय-सिंचन करते हैं, किन्तु जिसके शरीर पर

अस्वास्थ्य की डरावनी छाया मैंडराने लगती हो, उसका जीवन उस पतले धागे पर टैंगा रहता है जिसे मृत्युदेवता जब चाहे, तोड़ डाले। एक स्वस्थ व्यक्ति के नयनों में स्वप्न नाचते रहते हैं, उसके अंग-अंग में तरुणाई जम्हाई लेती रहती है। किन्तु जो विटामिन की शीशियों से स्वास्थ्य उधार मांगते फिरते हैं तथा गालों पर रूज' लगाकर लाली को धान्ति फैलाना चाहते हैं, वे दूसरों को धोखा दें तो दें, अपने को धोखा नहीं दे सकते। स्वास्थ्य की लाली तो खिलते गुलाब की लाली है, उसकी चमक तो सूरज की कुंआरी किरणों की चमक है।

अस्वस्थ के लिए जीवन भार बन जाता है, छप्पन भोग से भरी थाली कारतूस की गोलो मालूम पड़ती है, कश्मीर की सुनहली घाटी मृत्यु की तलहटी-सी मालूम पड़ती है, संगीत के सुन्दर सुर कर्णकटु और मन मगन करनेवाली किसी की खुली हँसी मन की कचोट हो उठती है।

अतः यदि हम पृथ्वी का सारा सुख भोगना चाहते हैं, यदि हम राष्ट्र और विश्व की उन्नति करना चाहते हैं, यदि हम धर्म-साधन करना चाहते हैं, तो स्वास्थ्य-रक्षा के नियमों का पालन करें। महर्षि चरक ने लिखा है, स्वास्थ्य-रूपी घर को ठीक रखने के तीन पाये हैं-उचित आहार, पूर्ण निद्रा और ब्रह्मचर्य । फ्रैंकलिन की उक्ति विख्यात है कि सवेरे सोना और सवेरे जगना मनुष्य को स्वस्थ, सम्पन्न एवं बुद्धिमान बनाता है। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए अति का वर्जन करना चाहिए- अति भोजन, अति जागरण, अति शयन, अति विलास इत्यादि। महात्मा गांधी ने लिखा है जो जीभ के स्वाद में पड़ा, उसका स्वास्थ्य अवश्य नष्ट हुआ। बैण्डेल फिलिप्स का कथन है-स्वास्थ्य परिश्रम में वास करता है और उस तक पहुंचने में श्रम को छोड़कर अन्य कोई मार्ग नहीं।

अच्छा स्वास्थ्य सर्वोत्तुम रत्न है। उसे किसी मूल्य पर खरीदा नहीं जा सकता। जीवन का स्वाद तभी मिलता है, जब मनुष्य स्वस्थ रहे। स्वस्थ के लिए यही पृथ्चा वर्ग है, अस्वस्थ के लिए नरक। स्वस्थ मानव ही सृष्टि का सर्वोत्तुम श्रृंगार है। अतः जिस प्रकार हो, स्वस्थ रहने की पूरी चेष्टा करनी चाहिए।