अनुशासन 
Anushasan


'अनुशासन' शब्द 'शासन' के साथ 'अनु' उपसर्ग जोड़ने से बना है, जिसका अर्थ है 'शासन के पीछे' अर्थात् 'शासन के पीछे चलना'। श्रेष्ठजनों के आदेश पर चलना या स्वशासन के अन्तर्गत रहना ही अनुशासन कहलाता है। इस प्रकार अनुशासन शारीरिक एवं वैचारिक नियमों का पालन है। 

अनुशासन हमारे जीव की केन्द्रस्थ धुरी है। रथ का एक चक्र यदि पूरब की ओर तथा दूसरा पश्चिम की ओर जाय, तो रथ की गति क्या हो सकती है? इसी प्रकार मनरूपी सेनापति की अवज्ञा कर यदि दोनों पाँव दो ओर चलें, दोनों हाथ दो ओर उठे, दोनों कान दो ओर सुनें तथा दोनों आँखें दो ओर देखें, तो मनुष्य की क्या स्थिति हो सकती है। इसलिए यह आवश्यक है कि हम जीवन में कदम-कदम पर अनुशासनबद्ध होना सीखे।

युद्ध के मैदान मे विजयी होने का रहस्य है-सेनापति के एक इशारे पर बिना कुछ सोचे-विचारे जूझ पड़ना। खेल के मैदान में भी वे ही प्रशंसा के पात्र होते हैं, जो कैप्टेन के आदेश का पालन तत्परतापूर्वक करते हैं। शिक्षा-प्राप्ति की भी स्वर्णिम कुंजी है-अनुशासन। जो व्यक्ति अपने गुरू की आज्ञा का उल्लंघन करता है, उनके द्वारा बताये मार्ग का अनुगमन नहीं करता, वह शिक्षित नहीं हो सकता। वह अपने जीवन में पद, प्रतिष्ठा एवं धन-सभी से वंचित रहता है। कक्षाओं में सियार की बोली बोलनेवाले छात्र जीवन में सियार की तरह ही भटकते चलते हैं। परीक्षा भवन में छुरे की नोक पर कमाल दिखलानेवाले छात्र आजीवन छुरे की नोक पर ही चलते रहते हैं-कहाँ है. उनके जीवन में फूलों की सेज, कीर्ति की कुसुममाला एवं आदर का तिलक! परिवार में ऊधम मचानेवाले, माता-पिता की बातों की परवाह न करनेवाले, बड़े-बूढ़ों के वचन पर कान न देनेवाले स्वेच्छाचारी व्यक्तियों पर जीवनभर उपहास की धूलि पड़ती रहती है। उन्हें अपमान का गरल पान करना पड़ता है।।

अतः अनुशासन जीवन की चतुर्दिक सफलता का महामंत्र है। जैसे पुष्प सूई और धागे का अनुशासन मानकर हार बन जाते हैं, वैसे ही जीवन नियमों एवं नीतियों का अनुशासन मानकर महान् बन जाता है। हम महापुरुषों के जीवन पर किंचित् दृष्टिपात करें, तो अनुशासन की लाभ-हानि से परिचित हो जायेंगे। महात्मा गांधी, स्वामी विवेकानन्द, लोकमान्य तिलक इत्यादि का जीवन अनुशासन की डोरी से ही बैंधा था।

अनुशासन के अर्थ को स्पष्ट करते हुए आरम्भ में ही कहा गया है-अनुशासन -का अर्थ शासन के पीछे चलना है, अर्थात् जैसा शासन होगा, वैसा अनुशासन होगा।

माता-पिता आरम्भ में बच्चों को दुलार में बहकने के लिए छोड़ देते हैं और परिणाम होता है कि वे बड़े होकर सभी के सिर पर चढ़ जाते है। अँगरेजी की एक कहावत है, Spare the rod and spoil the child. (छड़ी रोकना बच्चे को बिगाड़ना है, 'लालनायिणो दोषाः', अर्थात् किसी को लगातार दुलारना उसे दुष्ट बनाना है)। शासन ही लोगों में अनुशासन लाने का जिम्मेवार होता है। मगर आज का शासन खुद अनुशासित नहीं है। शासन में चुनाकर आनेवाले नेता सिद्धान्त और वायदों को छोड़कर गद्दी के लालच में दल बदलते हैं। यही कारण है कि वे अपने कर्मचारियों में अनुशासन नहीं ला सकते। मगर यह शासन हमारा है। हमें चाहिए कि हम खुद अनुशासित हों, अनुशासन न माननेवाले ऐसे लोगों को वोट और आन्दोलन के द्वारा शासन से हटायें और तब सरकारी कर्मचारियों को भी अनुशासन में लायें।

अनुशासन कई तरह से आता है। जब हम छोटे रहते हैं तब परिवार या गुरुजनों पर निर्भर रहते हैं और उनकी आज्ञा या सीख के अनुसार चलकर अनुशासन के अभ्यस्त होते हैं। फिर बड़े होने पर समाज के बीच आने और खाने-कमाने पर कुछ सामाजिक कायदे और कुछ सरकारी कानून हमें अनुशासन में रखते हैं। परिवार, गुरुजनों की सीख, समाज के कायदे और सरकारी कानून-अनुशासन के ये चारों स्तम्भ भी समय के अनुसार होते हैं, समय की मांग के अनुसार या देश तथा समाज की आवश्यकता के अनुसार इनमें हेरफेर होता है। मगर हमें ध्यान रखना है कि यह हेरफेर भी तोड़फोड़ या उठापटक के ढंग पर न होकर तर्क के आधार पर, पंचायती ढंग से हो। तर्क के आधार पर पंचायती ढंग का कायदा यह है कि हम अपने लोगों की ही नहीं, बल्कि जिन्हें हम दुश्मन समझते हैं उनकी भी सही बात और माँग को सुनने-समझने का धैर्य रखें और उनके प्रति न्याय करें। असल में अपने स्वार्थ से परे न्याय-बुद्धि के अनुसार चलना ही अनुशासन है और यह अनुशासन व्यक्ति को सही अर्थ में सामाजिक बनाता है। हम राजा रामचन्द्र को भगवान् इसलिए मानते हैं कि वे बिगाड़ करनेवाली सौतेली माँ कैकेयी, सेवक हनुमान, सम्पत्ति के हकदार छोटे भाई भरत-यानी सबके प्रति दयालु, अनुशासित और सर्वस्व त्यागकर भी सबको सबका न्याय और अधिकार देनेवाले मर्यादापुरुष थे।

अतः यदि हम अपने समाज और राष्ट्र की उन्नति चाहते हैं, उन्हें यशस्वी एवं शक्तिशाली बनाना चाहते हैं, तो इसके लिए आवश्यक है कि हम परिवार, गुरुजन, समाज और न्याय के प्रति स्वय अनुशासित हों, ऐसे अनुशासित लोगों को ही चुनाव आदि द्वारा पंचायतो या सरकार में जाने दें और तब जहाँ भी, जिसका भी अन्याय या अत्याचार हो, उसका कानून और कायदे से प्रतिरोध करें। जब हम स्वयं अनुशासित होंगे, तभी किसी दूसरे को भी अनुशासित रख सकेंगे। Example is better than precept. (उपदेश से उदाहरण अधिक अच्छा होता है।