देशभक्ति 
Deshbhakti


पत्थर को मूरतों में समझा है तू खुदा है

खाके-वतन का मुझको हर जर्रा देवता है। -इकबाल 

जन्म लेने के बाद ही जिस धरती माता ने अपनी दुलार-भरी गोद में चिपका लिया, भला ऐसा कौन पापी होगा जो उसके प्रति श्रद्धान व्यक्त करेगा। मंत्रद्रष्टा ऋषि ने लिखा है-'माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः', अर्थात् पृथ्वी माता है और हम उसके पुत्र हैं। वस्तुतः, अथर्ववेद का यह मंत्र देशभक्ति का मूलमंत्र है। जिसने अपने देश की भूमि को माता मान लिया, वह उसकी सुरक्षा और सम्मान के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करेगा ही।

सच्चा देशभक्त अपना तन, मन, धन-सब-कुछ अपने देश पर वार देता है। उसे इसके लिए कुछ भी होम करने में हिचक नहीं होती। उसे न तो वनिता की ममता होती है, न सुत का स्नेह खींचता है। उसे न राजभवन का सुख लुभाता है, न तलवार की नोक की चुभन ही सताती है। वह मंसूर की तरह 'अनलहक' न कहकर, 'मातृभूमि' की ही रट लगाता है। वह घोड़े की पीठ पर सोता है, घास की रोटियाँ खाता है और हर घड़ी सर से कफन बाँधे रहता है। उसकी अभिलाषा माखनलाल चतुर्वेदी के 'पुष्प की अभिलाषा'-सी होती है-

मुझे तोड़ लेना वनमाली

उस पथ पर देना तुम फेंक, 

मातृभूमि पर शीश चढ़ाने

जिस पथ जावें वीर अनेक । 

हर देश का इतिहास ऐसे देशभक्तों की अमर कथाओं से उजागर है। हमारे देश के इतिहास में महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी, महारानी लक्ष्मीबाई, खुदीराम बास, पंडित चन्द्रशेखर आजाद, सरदार भगत सिंह, लोकमान्य बालगंगाधर तिलक, वार सावरकर, महात्मा गांधी, नेताजी सुभाषचन्द्र बोस इत्यादि के नाम स्वर्णाक्षरों में लिख हैं। ऐसे वीरों का रक्त स्वतंत्रता-वृक्ष के बीज का काम करता रहा है।

देशभक्तों का गुणगान कितने महान् कठों से हुआ है। बायरन ने कहा है, जा अपने देश से प्रेम नहीं करता, वह अन्य किसी वस्तु से प्रेम नहीं कर सकता (He, who loves not his country, can love nothing.) डेनियल वेब्सटर ने कहा है, हमारा लक्ष्य हमारा देश-सम्पूर्ण देश हो और कुछ नहीं (Let our object he our country, our whole country, and nothing but our country.)


हावार्ड का कथन है, देश की भलाई हमारे लिए प्रथम करणीय है (Our country's welfare is our first concern and who promotes that best, proves his duty.) और, हिन्दी के एक कवि ने लिखा है-


मरना अगर पड़े तो मर जायें हम खुशी से, 

निज देश के लिए, पर छूटे लगन न जी से ।। 

पड़ संकटों में चाहे बन जायें हम भिखारी। 

सिर पर मुसीबतें ही आ जाये क्यों न सारी ।। 

हिम्मत कभी न हारें, बिचले न मन हमारा। 

छूटे खदेश की ही सेवा में तन हमारा ।।


किन्तु कुछ ऐसे भी हैं, जो खून लगाकर शहीद बनते हैं या फिर देश से दगाबाजी कर किसी तरह कुछ दिन शासन पर आ जाते हैं। इतिहास में ऐसे लोगों के काले कारनामे लिखे हैं। जयचन्द और मीरजाफर आज भी अनेक मिलेंगे, जो चीनी और पाकिस्तानी दलालों का काम करते हैं, अपने देश का रहस्य उन्हें बतलाते हैं, एक तरफ देशभक्ति का ढोंग रचते हैं और दूसरी तरफ देश का माल और धन दुश्मन देशों तक चोरी से भेजकर काला धन कमाते हैं और देश को दुर्बल करने के लिए न मालूम कितने रहस्यों की सौदागरी करते हैं। ये देश के कलंक हैं और इन्हें जितनी भी सजा दी जाय, थोड़ी है।

कहा जाता है कि देशभक्ति विश्वबन्धुत्व की बाधिका है, काँटा है। मैं इसे कदापि नहीं मानता। हम संसार के दूसरे देशों के हितों की रक्षा करें, उनकी ओर विस्तारवादी लोलुप दृष्टि न दौड़ायें-इसका अर्थ यह नहीं होता कि हम अपनी मातृभूमि के प्रति प्रेम न करें। 'वसुधैव कुटुम्बकम्' का यह अर्थ नहीं कि कोई जालिम हमारी भूमि की ओर गिद्ध की तरह देखे और हम उसे छोड़ दें। दिनकरजी ने भी कहा है-


छीनता हो स्वत्व कोई और तू 

त्याग तप से काम ले, यह पाप है। 

पुण्य है विच्छिन्न कर देना उसे 

बढ़ रहा तेरी तरफ जो हाथ है।


'जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी' (जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है) के माननेवाले देशभक्तों की सुगन्धि से कोई भी राष्ट्र सुवासित होता है। उनकी सुगन्धि तो ऐसे मलयगिरि-चन्दन की सुगन्धि है, जो पास में रहनेवाले निर्गन्ध निस्सार वेणुविटपों को भी सुगन्धित कर देती है। इतिहास में जहाँ-कहीं उजियाला है, चाँदनी है-वस्तुतः इन्हीं देशभक्तों की उज्ज्वल अमरगाथाओं से फूटनेवाली चाँदनी है। जो देश के लिए आत्मबलिदान करता है, उसे देश देवता की तरह पूजता है, उसके गुणों का कीर्तन करता है और उसकी स्मृति में उत्सव मनाता है-

शहीदों की मजारों पर लगेंगे हर बरस मेले। 

वतन पै मरनेवालों का यही बाकी निशाँ होगा।