गाय मेरा प्रिय जानवर 
Cow Mera Priya Janwar


गाय मेरे लिए पशुमात्र नहीं,पालतू प्रिय जानवर नहीं,वरन पूज्य प्राणी है। ज्योंही मेरी दृष्टि इसकी ओर जाती है, मेरा रोम-रोम इसकी पूजा के लिए पुलकित हो उठता है।

सृष्टि के शुभारम्भ से ही हमारे देश में गो-पूजा होती रही है, उसके माहात्म्य का कीर्तन होता रहा है। यदि महाराज दिलीप नन्दिनी नामक गाय की सेवा न करते, तो फिर उनके रघु-जैसा प्रतापी पुत्र कैसे होता? और, जब रघु नहीं, तो रघुवंश कैसे चलता? और, रघुवंश नहीं चलता, तो पुरुषोत्तुम राम का रामराज्य कैसे सम्भव हो पाता? यदि कृष्ण कन्हैया गोकुल में गो-सेवा नहीं करते, यदि उसके दूध से उनका शरीर पुष्ट नहीं होता, तो वे किस प्रकार कंस का संहार कर पाते? हमारे प्रभु ने गाय की आराधना की है, यही क्या कम रहस्यपूर्ण है, कम महत्त्वपूर्ण है!

चाहे लौकिक दृष्टि हो या पारलौकिक, गाय का महत्त्व निर्विवाद है। लौकिक दृष्टि से गो-दुग्ध में इतने प्राणद तत्त्व हैं कि उनसे हमारे शरीर का पूर्ण पोषण होता है। जब हमारी जननी अशक्त हो जाती है, तब गौ अपने दूध द्वारा हमें जीवनदान करती है।

वैज्ञानिक दृष्टि से इसमें इतने प्रोटीन और विटामिन हैं कि इससे उत्तुम पेय और खाद्य की कल्पना भी नहीं की जा सकती। दुग्धकल्प, दधिकल्प से तो अनेक असाध्य रोग दूर किये जाते है। इतना ही नहीं गोरस के बिना तो भोजन के सब रस ही नीरस हैं। सारे दुर्लभ प्रमाणनों के मूल मे तो गोदुग्ध ही है न!

हमारे जन्म-ग्रहण से मृत्यु तक - कोई ऐसा अनुष्ठान यज्ञ उत्सव, त्योहार नहीं है, जिसमें गाय की आवश्यकता न पड़ती हो। पंचगव्य, अर्थात गाय का दूध, दही, घृत, गोबर और मूत्र-- ये पाँचों पदार्थ हमारे हर धर्म कर्म में अनिवार्य है। अन्न-ब्रह्म की प्राप्ति में इसका बेटा बैल हो हमारा सबसे बड़ा सखा और सहायक है। अब तक वह कृषि-संस्कृति का मरुदण्ड रहा है। बैलों के जोड़े ही सामान्य जनता के रथवाह है। पारलौकिक दृष्टि से, यदि मरने के बाद भी गौ की पूछ नहीं पकड़ते, तो भयानक वैतरणी से हम पार कैसे पा सकते हैं?

वैदिककाल मे भी जब कोई अतिथि घर आता था, तो ऋषि गाय के दूध से उसका स्वागत करते थे, इसलिए अतिथि को 'गोपन' कहत थे। आज भले ही हम अतिथियों के आगमन पर चाय के पास जाय. किन्तु वह तभी स्वीकार्य हो पाती है, जब उसकी कालिमा में दुग्ध अपनी उपस्थिति से प्रीति की लालिमा छिटका देता है। यही कारण है कि 'मही' की इस दुलारी बेटी गौ को 'माहेयी' कहा गया, स्वर्ग की इस लाइली को 'सौरभेयी'। हमारे लिए यह 'माता' भी है, 'कामधेनु' भी। यह हमारा पालन-पोषण, जीवन रक्षण ही नहीं करती, वरन् अनन्त अभिलाषाओं की पूर्ति भी करती है। कितना कष्ट होता है जब कोई जालिम 'गोमेध' के गलत अर्थ की दुहाई देकर 'गोहत्या' करता है। 'गोमेध' का जो वास्तविक अर्थ नहीं जानते, उन्हें श्रीअरविन्द का 'वेद-व्याख्यान' अवश्य पढ़ना चाहिए। गाय का एक पर्याय 'अन्या' है, जो इसकी अवध्यता की सम्पुष्टि करता है।

गाय हमारी माता है, देवी है; यह हमारे लिए शिवा है, धात्री है, ईश्वरी है। काश! रसखान का स्वप्न हमारे लिए साकार होता

आठहु सिद्धि नवौ निधि को सुख 

नन्द की गाइ चराइ बिसाएँ ।