गर्मी का मौसम 
Garmi ka Mausam


हमारा देश रंग-बिरंगी ऋतओं का रंगमंच है, जिनके नाम है-वसंत, ग्रीष्म, पावस, शरद, हेमन्त और शिशिर। किन्तु, आज हमें यह पता भी नहीं चलता कि वसंत का मदिर मलयानिल कब आता है और चला जाता है, हेमंत का हेम-रथ कब आता है और लौट जाता है तथा शिशिर के डर से कब शशक कुलांचे भरना छोड़ देता है। आज तो हम जिन तीन ऋतुओं को स्पष्टतः देखते हैं और अनुभूत करते हैं, वे हैं गर्मी, बरसात और जाड़ा।

यदि सच कहा जाय तो भारतवर्ष ग्रीष्म का ही देश है। इंगलैण्ड में जैसे वर्ष में नौ-दस महीनों तक जाड़ा रहता है, उसी तरह हमारे देश के अधिकांश भाग में साल के आठ-नौ महीनों तक गर्मी रहती है। जिसे हम वर्षाऋतु कहते हैं, उसमें भी उमस की कमी नहीं होती। अतः ग्रीष्म या गर्मी हमारी राष्ट्रीय ऋतु है, जो हमारी प्रकृति के अनुकूल ही है। हम भारतवासियों में आज भी ऊष्मा है, जवानी की गर्मी है, पौरुष की दाहकता है तथा अनाचारों को जला देनेवाली अग्नि-शिखा है, इसलिए ईश्वर ने हमारे देश को ग्रीष्पप्रधान बनाया है। सूरज जो दिनभर तपता है, वह मानो हमारे भावों को ही विवृति करता है। संसार में इतनी विषमता हो, इतना वैमनस्य हो, इतना अन्याय हो और हम इनसे संतप्त न हों, ऐसा कैसे सम्भव है? अतः ग्रीष्म सचमुच हमारे उबलते पौरुष एवं अनाचारों को क्षार-क्षार कर देनेवाले ऊर्जवल तेज का प्रतीक है।

ग्रीष्म के बारे में कवियों ने भिन्न-भिन्न तरह के विचार व्यक्त किये हैं, किन्तु मुहम्मद इकबाल की यह पंक्ति ही पर्याप्त मालूम पड़ती है-'आह ! बेचारों के आसाब (पेशियों) पर रहती है औरत ही हर-घड़ी सवार।' चाहे खून को सुखा देनेवाली कितनी भी भीषण गर्मी क्यों न हो, हर क्षण इनका तन हिमानी जल का छिड़काव चाहता है। चाहे मन बेचैनी के आलम में कराहता ही क्यों न हो, किन्तु इन्हें कामिनी की स्मृति सताती रहती है। कहाँ ग्रीष्म की प्रचण्ड लू और कहाँ नाजुक नायिका की विरह की लचीली उसाँसें, मगर कवियों की हर ठौर स्त्रैणता सोचनेवाली बुद्धि ने दोनों को एक कर ही दिया। इसके विपरीत, ग्रीष्म के असली सधुक्कड़ी-वैरागी रूप को देखकर, उन कविवर बिहारीलाल ने, जो किसी से भी कम श्रृंगार नहीं साधते रहे, सचमुच सही बात कही है कि इस ग्रीष्म ने तो संसार को ही तपोवन बना दिया है। यह ग्रीष्म का ही पुण्य-प्रताप है कि साँप और मयूर, मग और बाघ, जो एक-दूसरे के शत्रु हैं, एक साथ निवास कर रहे हैं

कहलाने एकत बसत, अहि मयूर मृग बाघ ।

जगत तपोवन सों कियो, दीरघ दाघ निदाघ ।।

ग्रीष्म मेरी दृष्टि में निन्दनीय नहीं है। यह तो हमारे पौरुष का पुंजीभूत ज्वाल है, जगत को तपोवन बना देनेवाला तपस्वी है, हमें रसराज अमृतफल आम का उपहार देनेवाला सम्बन्धी है, बेला और हिना की सुगन्धि लुटानेवाला कोई उदार गंधी है।

इस ऋतु में कार्य-सम्पादन की असुविधाओं की बात कही जाती है। वैसे देशों में, जहाँ दिनभर बर्फ गिरती रहती है, हर वक्त कुहासा छाया रहता है, बाहर निकलने में शरीर पर बर्फ जम जाती है, वहाँ भी वैज्ञानिक अनुसंधानों से कार्यालय, कारखाने, घर तथा गाड़ियों को इस तरह वातानुकूलित कर दिया गया है कि किसी तरह की परेशानी नहीं रह गयी है। हम चाहें तो अपने घर, अपने कार्यालय, अपनी गाड़ियों को वातानुकूलित कर सकते हैं—बिजली-पंखे और एयर-कूलर का प्रयोग कर सकते हैं। किन्तु याद रखें कि ग्रीष्म हमें संघर्ष का महामंत्र देता है, न कि भोग का।

जो व्यक्ति अपने जीवन में प्रगति के उच्चतुम शिखर पर आरूढ होना चाहते हैं, वे सुविधाओं की सुमन-शय्या पर सोने की आदत छोड़ें। ग्रीष्म सचमुच हारी-थका शिराओं में भी मकरध्वज की ऊष्मा उड़ेलकर हमें मृत्युंजय बना देनेवाला महान प्रकृतिदूत है, इसमें कोई सन्देह नहीं।