मेरा मनपसंद त्योहार – दिवाली 
Mera Manpasand Tyohar - Diwali


कार्तिक अमावस्या की अंधेरी रात। चारों ओर अन्धकार-ही-अन्धकार। हाथ को हाथ नहीं सूझता। न सूरज का पता, न चाँद का। मानो मनु-पुत्र घनघोर अन्धकार में मछली-सा तिलमिला उठा। उसने मंत्रवाणी में पुकारा-'तुमसो मा ज्योतिर्गमय', 'हम अन्धकार से प्रकाश की ओर चलें'; बाइबिल की भाषा में संकल्प व्यक्त किया-

Let there be light and there was light. 

बस, क्या था, जल उठे मिट्टी के अनगिनत दीये-बिलकुल निर्यात्, पूर्ण निष्कम्प। ज्योति के सिंह-शिशु के भय से भाग उठी तमित्रा की कोटि-कोटि गजवाहिनी। बिंध उठे आलोक-शर से तमिस्रा-गजों के अंग-प्रत्यंग। धरती का प्रकाश वर्ग के सोपान को भी प्रकाशित करने लगा। खिल उठा खुशियों का सहस्रदल कमल, बज उठे आनन्द के अनगिन सितार।

कहते हैं, जब पुरुषोत्तुम राम लोकपीड़क रावण का संहार कर अयोध्यापुरी लौटे, तब घर-घर, नगर-नगर दीप जलाकर यह उत्सव मनाया गया और तबसे दीपावली का शुभारम्भ हुआ। गोस्वामीजी ने 'गीतावली' में इसका रमणीय वर्णन किया है-

साँझ समय रघुवीर-पुरी की शोभा आजु बनी।

ललित दीपमालिका विलोकहिं हितकरि अवध धनी ।। 

फिर यह भी कहा जाता है कि जब श्रीकृष्ण ने नरकासुर-जैसे आततायी का विनाश किया था, तबसे यह प्रकाश-पर्व मनाया जाने लगा दीपों की अवली सजाकर। कभी वामन विराट ने दैत्यराज बलि की दानशीलता की परीक्षा ली थी, उनका दर्प-दलन किया था और तभी से उसकी स्मृति के लिए यह आलोकोत्सव मनाया जाता है।

जैनधर्म के महान तीर्थकर वर्द्धमान महावीर इसी दिन पृथ्वी पर अपनी अन्तिम ज्योति फैलाकर महाज्योति में विलीन हो गये थे इसलिए भी इसका महत्त्व है। आधुनिक भारतीय समाज के निर्माता और आर्य-जगत् के मंत्रद्रष्टा स्वामी दयानन्द का भी यह निर्वाण-दिवस है।

हमारे चार पुरुषार्थ हैं-धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। दीपावली अर्थ की आराधना का त्योहार है। इस दिन हम अर्थ की देवी लक्ष्मी की उपासना करते हैं, क्योंकि हमारे जीवन में अर्थ की भी अनिवार्यता है। लक्ष्मी महारानी वहीं आती हैं, टिकती हैं जहाँ प्रकाश हो, जहाँ शुभ और स्वस्ति हो।

अतः दीपावली हमारे लिए एक महान ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक पर्व है। एक ओर यह हमारे महान पूर्वपुरुषों की गौरवमयी विजयगाथाओं से सम्बद्ध है, तो दूसरी ओर समग्र संसार के लिए प्रकाश-कामना का प्रतीक है। हम मानवजाति को अन्धकार से प्रकाश, असत् से सत् तथा मृत्यु से अमृत की ओर ले जायँ, 'तुमसो मा ज्योतिर्गमय, असतो मा सद्गमय, मृत्योर्माऽमृतं गमय'-हमारी इसी मंगलकामना की स्मारिका है। दीपावली। हम मानव-समाज को समृद्धि के शिखर पर ले जाय, हम सभी की सुविधाओं के सम्भव द्वार खोलने में समर्थ हो सकें-इसका साक्षी है दीपावली। दीपों का पर्व हमारे बाहर के अन्धकार को ही भगाने का नहीं, अन्तस् के अन्धकार को भी दूर करने के संकल्प का दिवस है-'एक दीप ऐसा भी बालो, अन्धकार भागे अन्तर का।' यह केवल एक राष्ट्र को मुक्त रखने की सौगन्ध-रजनी नहीं, वरन् समग्र संसार के राष्ट्रों को मुक्त रखने की मधुरात्रि है-

आज आओ मुक्ति के हम प्रज्वलित दीपक जलायें। 

और मानव-दासता की श्रृंखलाएँ टूट जायें।