दुर्गापूजा 
Durga Puja


हम यदि विद्या के लिए सरस्वती की उपासना करते हैं, तो शक्ति के लिए दुर्गा की। हमें केवल शास्त्र-बल नहीं चाहिए, शस्त्र-बल भी। किसी देश की सर्वाधिक प्रगति के लिए विद्यादायिनी और शक्तिदायिनी दोनों की आराधना आवश्यक है। यही कारण है, हम सदा सरस्वती और दुर्गा की आराधना करते रहे हैं।

दुर्गा दुर्गतिनाशिनी हैं। इनके निकट किसी अत्याचारी दैत्य का गमन सम्भव नहीं। इसीलिए इनके अवतरण और पूजन के बारे में तरह-तरह की कथाएँ हैं। महिष नामक असुर ने जब बहुत उत्पात मचाया, तो इन्होंने उसका दलन किया, इसलिए इन्हें 'महिषासुर मर्दिनी' कहते हैं। इन्होंने शुभ-निशुभ नामक असुरों का संहार किया, इसीलिए इन्हें 'शुंभ-निशुंभ-संहारिणी' कहते हैं। इन्होंने चंड-मुंड नामक राक्षस का विनाश किया, इसलिए इन्हें 'चामुंडा' कहते हैं। कहा जाता है कि जब श्रीराम लंका में रावण को पराजित नहीं कर पा रहे थे, तो उन्होंने इन्हीं महाशक्ति की पूजा की थी और इनसे वरदान पाकर रावण के संहार में सफल हुए थे।

अतः दुर्गापूजन अनीति, अत्याचार तथा असत् के नाश के निमित्त सनातन काल से किया जाता रहा है। हम दुर्गापूजन के अवसर पर आसुरी शक्तियों के विनाश के लिए कृतसंकल्प होते हैं।

यह महोत्सव औपचारिक रूप में आश्विन मास के शक्लपक्ष की प्रतिपदा से प्रारम्भ होता है। नवरात्रि तक देवी का पूजन चलता है और दसवीं रात्रि में बहुत धूमधाम से इनका विसर्जन होता है। दशमी के दिन समारोह अपनी चरमसीमा पर रहता है और प्रायः सारे भारतवर्ष में आबालवृद्ध नववस्त्र धारण कर माँ दुर्गा के दर्शन करत हैं, उसाद चढ़ाते हैं, जयजयकार करते हैं तथा मिष्टान्न से तृप्त होकर घर लौटते हैं।

दुर्गा का माहात्य इतना है कि उसका बखान शब्दों द्वारा सम्भव नहीं है। 'दुर्गासप्तशती' में इनके सात सौ नामों का उल्लेख इनके अपार गुणों की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट करता है। इनके अनेक नामों में कात्यायनी, गौरी, काली, शिवा, रुद्राणी, सर्वमंगला, चंडिका, अंबिका इत्यादि है। दुर्गापूजा की शुभ बड़ी में हम यह संकल्प करें, तो कितना अच्छा हो-

विजयादशमी का 

चिरप्रतीक्षित पावन पर्व

यह

मेवा-मिष्टान से 

भूषण-परिधान से 

तृप्त-तुष्ट न होवें हम 

बाहा हर्ष का नहीं, अपितु 

अन्तःसंकल्प का, 

भीष्मव्रत का है यह अनुपम दिवस कि

अज्ञान 

अस्मिता 

अकर्मण्यता के 

त्रिलोकत्रासक महिषासुर को 

हम मृत्यु के घाट उतार दें।