समाचारपत्र 
Samachar Patra

निस्तर छोड़ते ही नगरों में पता नहीं भगवान की याद आती है या नहीं, समाचारपत्र यानी अखबार की याद अवश्य आती है। मन तब तक उचाट बना रहता है, जब तक सामने अखबार न आ जाय।

समाचारपत्र प्रमख रूप से घटनाओं का विवरण प्रस्तुत करते हैं। बर्मा में प्रातःकाल सैनिक क्रान्ति हुई, तो वियतनाम में रात बमवृष्टिः श्रीमती इन्दिरा गाँधी की क्रूर हत्या हुई, तो अमेरिका में मार्टिन लूथर किंग गोली खाकर शहीद। देश-विदेश में जिस क्षण जो भी राजनीतिक भूकम्प आया, समाचारपत्र में शीघ्र ही उसके कम्पन का अंकन हो गया। अतः यह युग का गतिमापक यंत्र है। यह ऐसा दर्पण है, जिसमें हम जन-जीवन को प्रतिबिम्बत देखते हैं, यह ऐसा शीशा है, जिसके आर-पार देख सकते है। यह समाज का थर्मामीटर है. जिससे उसके ज्वर का पता चलता है। यह वह बरामीटर है, जिससे सामाजिक वातावरण के दबाव का भान होता है। इसे दूरबीन काहए, जिसके द्वारा हम बहुत दूर-दूर के दृश्य देख सकते हैं।

समाचारपत्र में राजनीतिक खबरें ही नहीं छपतीं, बल्कि सांस्कृतिक, धार्मिक आदि भी। इसमें बेकार अपना रोजगार ढूँढ़ता है; काँरा अपनी भावी पत्नी का पता खोजता है; व्यापारी बाजार-भाव पर नजर दौड़ता है; चलचित्र का प्रेमी ताजा फिल्मों के विज्ञापन पर दृष्टि गड़ाता है, तो खेलाड़ी खेल की खबर पर टूट पड़ता है। यात्राकामी रेलगाड़ी की समयसारणी उलटता-पलटता है। यह केवल सनसनीखेज खबरों द्वारा हमें चकित नहीं करता, वरन् भिन्न रुचिवाले लोगों को तृप्ति भी प्रदान करता है।

समाचारपत्रों की जन्मभूमि भले ही इटली रही हो, किन्तु आज सारे संसार में समाचारपत्रों की भरमार है। 1982 ई0 में ही केवल भारतवर्ष में 1,334 दैनिक तथा 5,898 साप्ताहिक पत्र प्रकाशित होते थे। इनमें सर्वाधिक दैनिक तथा साप्ताहिक पत्र हिन्दी में ही छपते हैं, जिनकी संख्या क्रमशः 442 तथा 2,594 है। विश्व का सर्वाधिक बिक्रीवाला समाचारपत्र 'असाही शिम्बुन' है। 16 अक्टबर, 1972 से इसकी प्रतिदिन सवा करोड़ से अधिक प्रतियाँ छपती और बिकती हैं।

समाचारपत्र चाहे दैनिक हो या साप्ताहिक, पाक्षिक हो या मासिक-इसके लिए बहुत बड़े संगठन की आवश्यकता होती है। पत्र-संचालक, मुद्रक, प्रकाशक, संवाददाता तथा सम्पादक-बड़े महत्त्वपूर्ण होते हैं। संवाददाता आधुनिक युग के नारद हैं। उनके लिए न कोई फल वर्जित है, न कोई स्थान। यदि वे हंस की तरह विवेकी हैं, तो गलत-सही समाचारों को परखकर पत्रों में स्थान देंगे, यदि नहीं तो बिल्कुल घटिया समाचार। सम्पादक का कार्य और भी उत्तरदायित्वपूर्ण है। उसकी थोड़ी असावधानी से बड़ा अनर्थ हो सकता है।

अतः समाचारपत्र आधुनिक जीवन के अनिवार्य अंग बन चुके हैं। जनमत के निर्माण में इनका बहुत बड़ा हाथ है। सबल समाचारपत्र महाप्रतापी नरेश दशरथ की भाषा में कह उठता है-

कहु केहि रंकहि करौं नरेसू।

कहु केहि नृपहिं निकासौं देसू॥ 

किन्तु, समाचारपत्र को ध्यान रखना चाहिए कि किसी अकारणकोपना कैकेयी की इच्छापूर्ति के लिए उसे अतिरिक्त उत्साह में तो कहीं ऐसा नहीं करना पड़ रहा है।

समाचारपत्र अपने देश की जनता के विचार बनाता है, वह जनता में ऐसा साहस देता है कि हर काम में और हर स्थिति में वह विजयी होती है। उसकी इसी महत्ता को लक्ष्य करते हुए उर्दू के सिद्धकवि अकबर का व्यंग्य है

खींचो न कमानों को, न तलवार निकालो 

जब तोप मुकाबिल हो, तो अखबार निकालो!