हमारा विद्यालय 
My School

हमारा श्रीकृष्ण उच्च विद्यालय रूपनगर विष्णुपदी गंगा के पावन तट पर अवा है। इसका नामकरण बिहार-केसरी डॉ. श्रीकृष्ण सिंह के उदात्त व्यक्तित्व को उजाकर करता है। पटना के अशोक राजपथ से लगभग तीस किलोमीटर पर निर्मित यह विद्यामंदिर राज्य का एक प्रमुख शिक्षा-केन्द्र है।

हमारे विद्यालय में लगभग सात सौ छात्र हैं तथा तीस शिक्षक। अधिकांश शिक्षक एम.ए. तथा एम, एस-सी, योग्यतावाले हैं। हमारे प्रधानाध्यापक श्री रामयश सिंह को राज्य के प्रायः सभी शिक्षाप्रेमी जानते हैं। उनका जीवन साधना एवं त्याग का जीवन है। यही कारण है कि हमारे शिक्षकगण भी उनके नेतृत्व में काम करना अपना गौरव समझते हैं। यहाँ केवल सातवें से दसवें वर्ग के छात्र पढ़ते हैं। सातवीं और आठवीं श्रेणियों में चार-चार तथा नौवीं और दसवीं श्रेणियों में तीन-तीन उपवर्ग (section) हैं।

हमारे विद्यालय में पढ़ाई का बहुत उत्तुम प्रबन्ध है। छात्रों को गृहकार्य भी दिया जाता है और हमारे शिक्षक छात्रों की उत्तरपुस्तिका को मनोयोगपूर्वक देखते हैं। वर्ष में दो बार आवधिक परीक्षाएँ तथा एक बार वार्षिक परीक्षा होती है। परीक्षा में किसी प्रकार का पक्षपात न हो, इसलिए प्रधानाध्यापक प्रतीक-पद्धति द्वारा विद्यार्थियों की उत्तरपुस्तिकाओं का प्रथम पन्ना बदल देते है और नामों के बदले प्रतीक से काम लेते हैं। उनके इस कार्य में उपप्रधानाध्यापक सहायता पहुँचाते हैं। यद्यपि अधिकांश छात्र गाँवों से आते हैं, लेकिन दसवीं श्रेणी के सभी छात्रों का छात्रावास में रहना अनिवार्य कर दिया जाता है। छात्रावास में अन्तिम कक्षा के छात्रों की विशेष पढ़ाई की व्यवस्था की जाती है। यही कारण है कि हमारे यहाँ के अधिकांश छात्र मैट्रिकलेशन परीक्षा में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होते हैं। शायद ही कोई वर्ष ऐसा रहा हो, जब हमारे विद्यालय का कोई छात्र योग्यता-छात्रवृत्ति ।Merit Scholarship) न ले। यही कारण है कि कई बार बिहार के शिक्षामंत्री हमारे विद्यालय में शिक्षा-व्यवस्था देखने आये और हमारे सहपाठियों के उत्तर से प्रसन्न होकर उन्होंने कई सहस्र का अनुदान दिया।

हमारे विद्यालय में एक अच्छा पुस्तकालय है, जिसमें सभी विषयों की पस्तके हैं। पुस्तकालय-भवन में ही वाचनालय है, जिसमें लगभग एक दर्जन दैनिक, मासिक तथा साप्ताहिक पत्र-पत्रिकाएँ आती हैं। विद्यालय तथा छात्रवास में रेडियो है। जब कभी आकाशवाणी से विद्यालयीय कार्यक्रम प्रसारित किया जाता है, तो हम राज्य के विख्यात विद्वानों की वार्ताओं से लाभान्वित होते हैं।

हमारे विद्यालय के पीछे एक बड़ा-सा आयताकार क्रीडाक्षेत्र है, जिसमें छात्र फुटबॉल, वॉलीबॉल, क्रिकेट, बैडमिण्टन इत्यादि खेलते हैं। शायद ही कोई वर्ष ऐसा रहा हो, जब हमारा विद्यालय कोई-न-कोई शील्ड न जीतता हो।

शिक्षण की एकरसता दूर करने तथा विशेष ज्ञानवर्द्धन के लिए हमारे प्रधानाध्यापक गोष्ठियों, वाद विवादों एवं भाषणों का आयोजन करवाते हैं। हमारे विद्यालय में गोस्वामी तुलसीदास की जयन्ती बड़ी धूमधाम से मनायी जाती है। तुलसी-सप्ताह के अन्तर्गत सात दिनों तक रामायण-पाठ चलता है। छात्रों के बीच निबन्ध तथा भाषण की प्रतियोगिताएँ आयोजित की जाती हैं। अन्तिम दिन तुलसी-साहित्य के किन्हीं वरिष्ठ विद्वान का हम प्रवचन सुनते हैं तथा उनका भाषण टेप कर लेते हैं और उसे हम अपने इच्छानुसार सुनते रहते हैं।

चाहे पढ़ाई का क्षेत्र हो या क्रीड़ा का, हमारे विद्यालय का नाम प्रथम रहता है। हम छात्र अपनी सारी शक्ति लगाकर अध्ययन करते हैं, ताकि हमारे विद्यालय की प्रतिष्ठा में चार चाँद लगता रहे। हमारे आचरण पर भी हमारे गुरुजनों के सदाना की अमिट छाप रहती है। हमारे आचरण को देखकर 'एटन' और 'हैरो' के छात्रों का आचरण स्मरण हो आना स्वाभाविक-सा लगता है।

भारतवर्ष एक दिन जगदगुरू के सर्वोच्च आसन पर विराजमान था। आज हमारे देश में शिक्षा में भले ह्रास हो गया हो परन्तु यदि हमारे विद्यालय-जैसे सभी विद्यालय हो जायें, तो वह दिन दूर नहीं जब हमारा देश अपनी नष्टप्राय मर्यादा प्राप्त कर संसार में पुनः समादृत हो।