अस्पृश्यता निवारण के बारे में सम्पादक को पत्र ।


सम्पादक महोदय, 

आर्यावर्त, 

फ्रेजर रोड, 

पटना-800001 


महाशय,

मैं आपके प्रतिष्ठित दैनिक पत्र 'आर्यावर्त' द्वारा सरकार एवं सामान्य जनता का ध्यान 'अस्पृश्यता-निवारण' की ओर दिलाना चाहता हूँ।

गत विश्व-हिन्दू-धर्म-सम्मेलन, पटना के अवसर पर पुरी के शंकराचार्य महाराज ने अस्पृश्यता के समर्थन में कुछ ऐसा कहा कि सारे देश में खलबली मच गयी थी। वस्तुतः, आज के युग में अस्पृश्यता का समर्थन महापाप है, घोर अपराध है। जब धार्मिक व्यक्ति ऐसा मानते हैं कि सभी मनुष्य ईश्वर के अंश से उत्पन्न हैं, तो छत-अकृत मानने की गुंजाइश कहाँ रह जाती है। वैज्ञानिक अनुसन्धान ने भी सिद्ध कर दिया है कि ब्राहाण और डोम के रक्त में कोई अन्तर नहीं है। मनुष्य मनुष्य की परछाई से दूर भागे, उसका छुआ अन्न-जल न ग्रहण करे, उसके साथ एक आसन पर न बैठे, एक स्थान पर पूजा-पाठ न करे-इससे बढ़कर अधर्म और अन्याय कुछ हो नहीं सकता।

अतः सरकार से मेरा अनुरोध है कि जो व्यक्ति अस्पृश्यता का समर्थन करता है, उसे दण्डित करने की व्यवस्था की जाय। सामान्य जनता से भी मेरा अनुरोध है कि जो व्यक्ति समाज में छुआछूत का विष-वमन करता हो, उसके प्रति सामाजिक बहिष्कार का वातावरण निर्मित होना चाहिए।

आपका

राजेश्वरप्रसाद सिंह 

दिनांक 6 सितम्बर, 1991 

मेरा पता-राजेश्वरप्रसाद सिंह,

द्वारा-छात्रावास-अधीक्षक, 

जिला स्कूल, मुंगेर-811201