कभि हिम्मत ना हारिन
Kabhi Himmat Na Harin
हम तै इन सोचिक चन्न चयाँद कि—
हम प्रकृति-पुत्र छवाँ।
हमन पाडू मा जन्म ल्याई,
ये वास्ता कि—
हम ऊँकी तरां सदानि—
ठोस अर संघर्सरत खाँ।
पर कभि हिम्मत नि हारवाँ ।
मित्रो! मीन गंगा त बिसाल चट्टानूंक दगड़ टकराँद,
लड़द-झगड़द अर बतियाँद, द्याखी।
पर कभि निरास-हतास, हिम्मत हार्द नि द्याखी,
वा समस्त पथ-बाधों से पार करीक,
अपण मंजिल-प्रेम-पयोनिधि तक पौंची जाँद ।
वींकि प्रबल इच्छासक्ति ही त वीं तै उख तक पौंचाँद,
कभि तुमन फूलू की घाटी त देखी ह वेली।
उ बनफूल इनि त रैदन बुन्न कि—
जिदगी हमरी तरां मुस्कराण कुण छ,
रूण-गिड़गिड़ाण कुण नी छ ।
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