प्रदूसण 
Pradusan



अब हम जख भि जाँदवाँ, 

उखि भोजन कू बजाय—

हवा, पाणी अर सोर कू प्रदूसण ही अधिक खाँदवाँ, 

पर ए चिल भि भयानक प्रदूसण त वा छ, 

जु भौत मात्रा मा हररोज हमर भितर भर्यायूँ छ । 

हर आदिम आज—

जाति-धर्म, प्रान्त-भासा, गाँव-सहर, छुटू-बडू, 

गरीब-अमीरिक प्रदूसणन खज्या" छ ।