कपटी मित्र 
Kapti Mitra



हम नाम-काम, सकल हुणक--

फैदा तीन खूब उठायी। 

नाटक दोस्तिक कन्नु रैई, 

अर रोल दुस्मन कू निभायी॥


ज़ख भि गे तू, उखि मीतै-

आरन काटणं रैई। 

तेरी औछी औकातन, 

क्य-कुछ मीन नि साई॥


इन ईस भि क्य जैन—

त्वे तै इतना नीच बणाई। 

मीतै अपमानित करीक, 

तीन धन-मान खूब कमाई॥


बड़-बड़ लोगूं तै भि तू—

खूब बेवकूप रै बाँणूं। 

झूठ-लूट कू सरेआम तू—

व्यापार रै चलाँगें ॥


जख-जख गे उखि तीन मेरी—

कोलतारन तस्वीर बणाई, 

बुरु से बुरु इल्जाम लगाई, 

तू कपटी मित्र छ रे भाई।