प्यासी छ 
Pyasi Cha



मछली या पाणी मा रैक भि प्यासी छ । 

भरी जवानी मा पतझड सी उदासी छ । 

तू क्यो कू रुठिक परदेस गे स्वामी! 

तेरी याद मा दिन-रात रुणी या दासी छ । 

मछली या पाणी मा रैक भि प्यासी छ, 

म्यारु छैला बाबू तू घर ए जा, 

मीत लहराँद सौंण दे जा। 

त्यार बिन-सूनी लगदी या कासी छ, 

मछली या पाणी मा रैक भि प्यासी छ। 

बसन्त म्यार सब तन्नी गेन । 

सभि परदेसी अपणी बिगरैलिम एन । 

क्य कामकि तेरो पैसों को रासी छ, 

जवानी हूँणी हर रोज बासी छ, 

मछली या पाणी मा रैक भि प्यासी छ।