ये सहर मा दर्द क्य छ?
Ye Sahar Ma Dard Kya Cha



य सहर मा दर्द क्य छ? 

क्य बताण चच त्वे त? 

सब से ज्यादा अपुर्ण ही—


लोगून लूटी द्याई मीतै । 

निर्दोसं कुण भि सहर, 


जेल बणी गेन हरदम । 

सौतेलू यू बुरु व्योहार, 


हद नी छ थुड़ा भि कम । 

गढ़वालि छौं सीधू-सादू, 


बिल्कुल प्रकृतिक तरां, 

हम परदेसी बणी गवाँ,

आज अपुर्ण देस मा।


आंद बो तिवारी को याद,

घुटुतूं कू बल रींगी छ्या मी,

आंद वो गौडिक की याद, 

दूध जल पी ङ्या मी।


आंद वे झूला की याद, 

जै मार द-सोद्छ्य । मो, 

यं रेसमा गद्दौ मा यख, 

कग नोद बा, कख चैन उ, 

हे जन्म भि, तू बता, 

क्य ऋण चुकौं मी आज त्यारु ? 

हे गंगा-हिमालय की धरा, 

स्वीकार कर प्रणाम म्यारु।