रैबार 
Rebar



जीवन जीण कुण छ, 

रूण-गिड़गिड़ाण कुण ना। 

तुम दिवता न सै, 

आदिम त बणी जाऊ। 

तुम भि वेको सन्तान छ्याऊ, 

जैन या सृस्टि, यु हिमालय बणाई। 

गंगा-यमुना अर हवा बगाई, 

सेठ-साहूकार बर्णन, 

सर्ग पर सूरज-चाँद चमकैन । 

तुम निरास हतास क्यो कुण छ्याऊ ? 

ए 'रैबार' पढ़ो अर पढ़ाऊ । 

विरह-मिलन कू गीत छोड़िक, 

लोक-हित कू गीत गाऊ। 

सब पर हथ्थ लगाऊ। 

चुचों ! जरा तुम भि उबै उठि ज ऊ।