महात्मा गाँधी
Mahatma Gandhi
राष्ट्रपिता गाँधी,
निस्सन्देह महात्मा छ्याई।
बलिस्ठ, कर्मठ आत्मा छ्याई।
उ सदानि नीरोग रैन ।
पर ऊंन हिन्दुस्तान्यूक—
रोग-सोग सब-कुछ सैन।
उ स्वयं सयमी छ्याई।
पर ऊँन असंयमी भारत्यक –
गुलामिक पीड़ा हँसद-हँसद साई,
हमर वास्ता, हमर बुर कमुन, बुरि सोचन उ घायल हवेम।
इंसानियत क वास्ता ऊँन डंडा खैन ।
उ प्लेटफार्म पर फिके गन।
वेन कैक भले ह्वाई?
गाँधिक ?
ना भाई ना।
हम सब्बुक भले ह्वाई।
उ महाप्रण छ्याई।
दक्षिण-अफ्रीका उ मार खाण रैन ।
फिर भि उखक काल कानून तै जलाण रैन,
ज़रा स्वाचदी।
आज़ादी से पैल हमरी दसा क्य छे ?
हम सिर्फ डाँ, भटक्याँ, अधमर्यां भेड़ छ्याई।
जौं त अंग्रेज,
जख चाँद, उखि लिजाँद छयाई,
जेलू मा जगा नि हंदी छेई,
त डालूं पर लटकाँद छ्याई ।
परमात्मन हमरी विवसता,
हमरी पख सता, गूंगी पीड़ा,
गाँधी ते द्याई।
हमरी आजादिक आँधी ते द्याई ।
हिन्दूस्तान्यं कूण ऊँन क्य नि करी ?
यूं तै वर्ग-वर्णक भेदभाव से बचाई,
अर 'वसुधैव कुटम्बकम्' क पाठ पढ़ाई ।
उ रास्ट्रपिता छ्याई।
ये वजह से ऊँन—
रास्ट्रीय एकता, अखंडता कू वास्ता,
अपणी बलि दे द्याई ।
उ गरीब नि छ्याई।
फिर भिउ हिन्दूस्तान्यं कूण अर्धनग्न रैन ।
निर्धन बणी गैन ।
ऊँन कोड्यंक घाव ध्वेन ।
उ मज़बूर नि छ्याई।
ऊँन कुछ संग्रह नि करी—
न सून, न चाँदी।
फिर भि दुनियान ऊँ तै नाम द्याई—
'मजबूरी कू नाम महात्मा गाँधी',
गाँधिन कै कू अधिकार हनन नि करी।
उ सत्य, स्वावलम्बी अर अहिंसावादी छ्याई।
हमर पापुन ही ऊँ ते हिंसान मारी।
पर के कुण? क कुण ?
हिन्दूस्तान्यू कुण ।
इंसानियत कुण।
उ आजीवन अभ्यास-प्रयोग कन्न रैन ।
अपणा भैर भितर सद्गुण भन्न रैन ।
पर एक दिन हमन –
ऊँकी अच्छक, सच्चैक जल द्याई होली।
वे बुड्या बाबा ते मारी याई गोली।
ऊँक हदै फिर भि हम कुण मैल नि ह्वाई।
उ सिर्फ परोपकारक वास्ता आजीवन करद रैन काम ।
छाती पर गोली खैक भि—
उ सब कुण बोली गेन- राम राम' ।
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