मेरे विद्यालय का पुस्तकालय
Mere Vidyalaya Ka Pustkalaya
शिक्षा के क्षेत्र में पुस्तकालय का महत्त्वपूर्ण स्थान है। हम बिना पुस्तकालय' के एक विद्यालय की कल्पना भी नहीं कर सकते। विद्यालयों व महाविद्यालयों में यह अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। यह शिक्षा व सूचना का महत्त्वपूर्ण माध्यम है। यह विद्यार्थियों में स्वाध्याय करने की आदत पैदा करता है। सभी अच्छे विद्यालयों में अच्छे पुस्तकालय हैं।
मेरे विद्यालय के पस्तकालय में भी बड़ी व विभिन्न विषयों की पुस्तकों का संग्रह है। इसमें एक बड़ा हॉल व तीन बड़े कमरे हैं। इसमें हवा व रोशनी के लिए बड़ी-बड़ी खिड़कियाँ हैं। इसमें बड़ी-बड़ी मेज़े व आरामदायक कुर्सियाँ हैं। हॉल में रोशनी की व्यवस्था भी अच्छी है। कोई भी वहाँ आराम से बैठकर पुस्तकें, पत्रिकाएँ व अखबार पढ़ सकता है। यहाँ किसी को भी जोर से बोलने व अशान्ति उत्पन्न करने की अनुमति नहीं है।
यहाँ पर विभिन्न विषयों की हज़ारों पुस्तके हैं जिनमें 'विश्व-ज्ञान कोश' व 'शब्दकोष' आदि हैं। यहाँ पर बड़ी-बड़ी अलमारियाँ हैं जिनमें काँच का दरवाज़ा लगा हुआ है तथा उनमें वर्णमालानुसार पुस्तकें व्यवस्थित हैं। इसलिए किसी पुस्तक को प्राप्त करने में काठिनाई नहीं होती।
यहाँ पर एक पुस्तकालाध्यक्ष व दो उनके सहायक और दो सहायक पुस्तकालयाध्यक्ष हैं। ये ध्यानपूर्वक पुस्तकें व पत्रिकाएँ रखते हैं। वह पुस्तकों को खोजने में भी सहायता प्रदान करते हैं। प्रत्येक कक्षा के लिए सप्ताह में एक घंटा पुस्तकालय का होता है। हम एक सप्ताह के लिए पुस्तक ले जा सकते हैं। पुस्तक देर से देने व गन्दी देने पर दण्डस्वरूप धन भी देना पड़ता है। पुस्तक पढ़ने को बढ़ावा दिया जाता है व पुस्तकालय के अधिक प्रयोग करने वालों को कुछ पुरस्कार भी दिए जाते हैं। परीक्षाओं के समय अधिक समय तक पुस्तकालय में पढ़ सकते हैं। यह रविवार व अन्य छुट्टियों पर भी खुला रहता है।
हमारी स्वाध्याय की आदत पुस्तकालय के द्वारा ही पड़ती है। इस प्रकार विद्यार्थी बिना अध्यापक पर निर्भर हुए पढ़ाई कर सकता है। इस तरह का प्रशिक्षण उच्च शिक्षा के लिए उपयोगी है। यह हमें उन विषयों-जो हमारे अध्ययन-क्रम में नहीं हैं-की भी शिक्षा देती है। इस प्रकार हमारा याद करने का पैमाना विस्तृत होता है। मेरा स्कूल पुस्तकालय-ज्ञान, सूचना, प्रेरणा व स्वस्थ मनोरंजन का फव्वारा है।
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