पंजाब की माहन संस्कृति
Punjab Ki Mahan Sanskriti
पंजाब की संस्कृति का भारतीय संस्कृति में महत्त्वपूर्ण स्थान है। पंजाब की धरती पर चारों वेदों की रचना हुई। यहीं प्राचीनतम सिन्धु घाटी की सभ्यता का जन्म हुआ। यह गुरुओं की पवित्र धरती है। यहाँ गुरु नानक देव जी से लेकर गुरु गोबिन्द सिंह जी तक दस गुरुओं ने धार्मिक चेतना तथा लोक-कल्याण के अनेक सराहनीय कार्य किए हैं। गुरु तेगबहादुर जी एवं गुरु गोबिन्द सिंह जी के चारों साहिबजादों का बलिदान हमारे लिए प्रेरणादायक है और ऐसा उदाहरण संसार में अन्यत्र कहीं दिखाई नहीं देता। यहाँ अमृतसर का श्री हरमंदिर साहिब प्रमुख धार्मिक स्थल है। इसके अतिरिक्त आनन्दपुर साहिब, कीरतपुर साहिब, मुक्तसर साहिब, फतेहगढ़ साहिब के गुरुद्वारे भी प्रसिद्ध हैं। देश के स्वतंत्रता संग्राम में पंजाब के वीरों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। देश के अन्न भंडार के लिए सबसे अधिक अनाज पंजाब ही देता है। पंजाब में लोहड़ी, बैशाखी, होली, दशहरा, दीपावली आदि त्योहारों के अवसरों पर मेलों का आयोजन भी हर्षोल्लास से किया जाता है। आनन्दपुर साहिब का होला मोहल्ला, मुक्तसर का माघी मेला, सरहिंद में शहीदी जोड़ मेला, फ़रीदकोट में शेख फरीद आगम पर्व, सरहिंद में रोज़ा शरीफ पर उर्स और छपार मेला, जगराओं की रोशनी आदि प्रमुख हैं। पंजाबी संस्कृति के विकास में पंजाबी साहित्य का भी महत्वपूर्ण स्थान है। मुसलमान सूफी संत शेख फरीद, शाह हुसैन, बुल्लेशाह, गुरु नानकदेव जी, शाह मोहम्मद, गुरु अर्जुनदेव जी आदि की वाणी में पंजाबी साहित्य के दर्शन होते हैं। इसके बाद दामोदर, पील, वारिस शाह, भाई वीर सिंह, कवि पूर्ण सिंह, धनीराम चात्रिक, शिव कुमार बटालवी, अमृता प्रीतम आदि कवियों, जसवन्त सिंह, गुरदयाल सिंह और सोहन सिंह शीतल आदि उपन्यासकारों तथा अजमेर सिंह औलख, बलवन्त गार्गी तथा गुरशरण सिंह आदि नाटकाकरों की पंजाबी साहित्य के उत्थान में सराहनीय भूमिका रही है।
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