Top 50 Hindi Language Phrases "लोकोक्तियाँ "
कुछ प्रचलित लोकोक्तियाँ 




1. अपना लाल गंवाय के दर-दर माँगे भीख- (अपनी वस्तु लापरवाही से नष्ट करके दूसरों से माँगते फिरना): सोमपाल ने अपनी सारी दौलत तो जुए और लॉटरी में गँवा दी और अब लोगों से उधार लेकर गुज़ारा करता है। किसी ने ठीक ही कहा है--अपना लाल गंवाय के दर-दर माँगे भीख। 

2. अधूरा छोड़े सो पड़ा रहे- (जो कार्य बीच में ही छोड़ दिया जाता है वह प्रायः अधूरा रह जाता है) : सुनो, तुम जो भी काम शुरू करते हो उसे बीच में ही छोड़कर किसी दूसरे काम में लग जाते हो। क्या तुम नहीं जानते--अधूरा छोड़े सो पड़ा रहे। 

3. अपना कोढ़ बढ़ता जाय, औरों को दवा बताय- (जब कोई व्यक्ति दूसरों से जो कहे परन्तु उसको स्वयं न करे या उसका स्वयं लाभ न उठाए) : लाला जगतराम जी, तुम दूसरों को सुबह-शाम सैर करने का उपदेश देते रहते हो किन्तु सैर न करने के कारण तुम्हारी स्वयं की तोंद तो बढ़ती ही जा रही है। इसे कहते हैं--अपना कोढ़ बढ़ता जाय, औरों को दवा बताय। 

4. आसमान से गिरा खजूर में अटका- (एक संकट से छूटकर/बचकर दूसरे में फँस जाना): वह चोरी के मामले से छूटकर आया ही था कि हेराफेरी के मामले में फँस गया। इसे कहते हैं--आसमान से गिरा खजूर में अटका। 

5. आँखों देखी सच्ची, कानों सुनी झूठी- (आँखों से देखी हुई बात सच होती है, कानों से सुनी हुई नहीं) : केवल सुनी सुनाई बात के आधार पर मोहनचंद को चोर कहना ठीक नहीं है। क्या तुम नहीं जानते-आँखों देखी सच्ची, कानों सुनी झूठी? 

6. ऊँट किस करवट बैठता है- (नतीजा न जाने क्या हो): भारत और श्रीलंका के बीच क्रिकेट मैच के फाइनल मैच को जीतने में कड़ी होड़ लगी हुई है। देखें, ऊँट किस करवट बैठता है। 

7. एक तंदुरुस्ती हज़ार नियामत - (सेहत बहुत बड़ा धन है): माँ ने अपनी पुत्री को कहा, "पढ़ाई के साथ-साथ अपनी सेहत का भी ध्यान रखो क्योंकि एक तंदुरुस्ती हज़ार नियामत होती है।" 

8. ओखली में सिर दिया तो मूसलों से क्या डर- (कठिन काम करने का निश्चय करके बाधाओं से न घबराना): अरी बहन ! जब नयी कोठी बनवानी शुरू कर ही दी है तो अब खर्चे से क्यों घबराती हो, ओखली में सिर दिया तो मूसलों से क्या डर। 

9. का वर्षा जब कृषि सुखाने- (असमय की सहायता लाभदायक नहीं होती) : अरे, चोर तो उसके घर से सब कुछ लूटकर भाग गये, अब पुलिस के आने से क्या फायदा। कहा भी है -का वर्षा जब कृषि सुखाने।  

10. कथनी नहीं, करनी चाहिए- (जब कोई इन्सान बातें तो बहुत करता है परन्तु करता कुछ भी नहीं): तुम हर बार बड़ी-बड़ी बातें करके हमारी वोटों से कॉलेज के प्रधान बन जाते हो किन्तु छात्रों की समस्याओं का कोई हल नहीं निकालते। याद रखो! हमें इस बार कथनी नहीं, करनी चाहिए। 

11. कौआ कोयल को काली कहे- (जब कोई व्यक्ति स्वयं दोषी होने पर भी दूसरे की बुराई करे तो उसके लिए व्यंग्य से ऐसा कहा जाता है) उस पर स्वयं तो भ्रष्टाचार के दोष तय हो चुके हैं किन्तु वह दूसरों की सारा दिन बुराई करता रहता है, इसे कहते हैं--कौआ कोयल को काली कहे। 

12. क्या जन्म भर का ठेका लिया है ? (कोई भी इन्सान किसी को जीवन भर सहायता नहीं दे सकता) : सुनो, जब तुम बेरोज़गार थे तो उसने तुम्हें अपने घर पर आश्रय दिया था किन्तु अब नौकरी मिल जाने पर तो तुम्हें अपना ठिकाना ढूँढ़ ही लेना चाहिए। उसने तुम्हारा क्या जन्म भर का ठेका लिया है ? 

13. काठ की हाँडी बार-बार नहीं चढ़ती- (कपटी व्यवहार सदैव नहीं किया जा सकता): पिछली बार तुम हमें धोखा देने में कामयाब हो गये थे किन्तु इस बार हम पूरी तरह सत्तर्क हैं। जानते नहीं--काठ की हाँडी बार-बार नहीं चढ़ती। 

14. कभी नाव गाड़ी पर कभी गाड़ी नाव पर- (समय/आवश्यकता पड़ने पर एक दूसरे की सहायता करना): एक दिन तुमने मेरी मदद की थी, आज मैं तुम्हारी मदद कर रहा हूँ। किसी ने ठीक ही कहा है--कभी नाव गाड़ी पर कभी गाड़ी नाव पर। 

15. घर का भेदी लंका ढाए- (आपसी वैर विरोध घर का नाश कर देता है): विभीषण ने श्रीरामचन्द्र से मिल कर रावण को मरवा कर लंका को नष्ट कराया था। सच है घर का भेदी लंका ढाए। 

16. जो गरजते हैं वे बरसते नहीं- (शेखी मारने वाले व्यक्ति कुछ नहीं करते): रौनकलाल की धमकियों की तनिक भी चिन्ता न करना। क्या तुम नहीं जानते कि जो गरजते हैं वे बरसते नहीं। 

17. जोते हल तो होंवे फल- (मेहनती व्यक्ति को ही फल की प्राप्ति होती है): सुखविन्द्र सिंह की बेटी ने साल भर कठिन परिश्रम किया, इसीलिए दसवीं की परीक्षा में पंजाब भर में प्रथम स्थान प्राप्त किया। सच है, जोते हल तो होवें फल। 

18. जाके पैर न फटे बिवाई, सो क्या जाने पीर पराई- (जिसने स्वयं दुःख नहीं झेला, वह दुखियों का दुःख नहीं समझ सकता) : अमीर लोग महँगाई भरी ज़िंदगी में ग़रीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की मुसीबतों को क्या समझेंगे। ठीक ही कहा है--जाके पैर न फटे बिवाई, सो क्या जाने पीर पराई। 

19. तेते पाँव पसारिए जेती लंबी सौर- (आय के अनुसार ही खर्च करना चाहिए): जब बेटे ने अपने पिता से कहा कि यदि हमें भी औरों की तरह थोड़ा कर्ज लेकर ठाट-बाट का जीवन जीना चाहिए तब पिता जी ने उसे समझाते हुए कहा बेटा! तेते पाँव पसारिए जेती लंबी सौर। 

20. तुम जानो तुम्हारा काम जाने- (बार-बार समझाने पर भी जब कोई न समझे और मनमानी करे तो उसे समझाना बेकार ही जाता है): देखो, तुम मेरे गाँव के रहने वाले हो इसीलिए तुम्हें इतनी बार समझा-चुका हूँ कि छात्रावास के इन बुरे लड़कों की संगति छोड़ दो। यदि नहीं मानते तो तुम जानो तुम्हारा काम जाने। 

21. तू डाल-डाल मैं पात-पात- (विरोधी की चाल समझना/अधिक चालाक होना) : कुश्ती प्रतियोगिता में दिनेश कोई भी पैंतरा अपनाता तो गुरमीत उसे पहले ही भाँप कर उसे नाकाम कर देता और मन ही मन कहता कि तू डाल-डाल मैं पात-पात। 

22. नीम हकीम खतरा जान- (अधूरा ज्ञान हानिकारक होता है): जब तुम्हें कार ठीक करनी नहीं आती तो इसका सारा इंजन खोलकर क्यूं बैठ गये हो, क्या तुम्हें नहीं पता, नीम हकीम खतरा जान ? 

23. नेकी कर दरिया में डाल- (किसी का उपकार करके उसे जताना नहीं चाहिए): भई, ठीक है तुमने गरीब गंगाराम की बेटी की शादी में उसे दो लाख रुपये देकर उसका भला किया किन्तु अब गाँव में सभी को बता क्यों रहे हो, क्या तुम नहीं जानते--नेकी कर दरिया में डाल। 

24. नाम बड़े और दर्शन छोटे- (प्रसिद्धि के अनुसार गुण न होना): तुमने तो कहा था कि संगीता बहुत मधुर गाती है किन्तु उसे गाते हुए सुनकर तो यही लगता है कि नाम बड़े और दर्शन छोटे। 

25. सीधी उंगली से घी नहीं निकलता- (निरी सिधाई से काम नहीं चलता): थानेदार ने चोर से कहा कि तुम प्यार से नहीं अपितु पिटाई से ही चोरी कबूल करोगे। किसी ने ठीक ही कहा है--सीधी उंगली से घी नहीं निकलता।

26. अंत भले का भला (भला करने वाले का भला होता है) : सबके सुखदुःख में काम आने वाले देवेन्द्र सिंह को जब अचानक चार लाख रुपये की आवश्यकता पड़ी तो उसके दफ़्तर के सह-कर्मचारियों ने मिलकर चार लाख रुपये का प्रबंध कर दिया। सच है, अंत भले का भला। 

27. अधजल गगरी छलकत जाए (कम गुण वाला व्यक्ति दिखावा बहुत करता है) : गोपाल बातें तो ऐसी करता है जैसे वह अंग्रेज़ी में बहुत माहिर है, पर वास्तव में जब वह अंग्रेज़ी बोलता है तो अनेक गलतियाँ करता है। सच है, अधजल गगरी छलकत जाए। 

28. अब पछताए होत क्या, जब चिड़ियाँ चुग गई खेत (समय निकल जाने पर पछताने से क्या लाभ) : सारा साल तुम पढ़े नहीं और फेल हो गए।  अब पछताए होत क्या, जब चिड़ियाँ चुग गई खेत। 

29. आँखों देखी मक्खी नहीं निगलते (जान बूझकर कोई बुरा या हानिकारक काम नहीं करते) जब पता चल ही गया है कि तुम्हारा लड़का नशेड़ी है, तो अब यह शादी नहीं होगी क्योंकि आँखों देखी मक्खी नहीं निगलते। 

30. आँवले का खाया और बड़े का कहा बाद में सीख देता है (आँवाला खाने में कसैला और बड़ों की शिक्षा सुनने में कड़वी ज़रूर लगती है पर दोनों का फायदा भविष्य में पता चलता है) अभी तो तुम्हें अपने माता-पिता की बातें कड़वी लगती हैं, किन्तु भविष्य में जाकर इनकी बातों की कीमत पता चलेगी, क्योंकि आँवले का खाया और बड़े का कहा बाद में सीख देता है।

31.  आम के आम गुठलियों के दाम (दुगना लाभ) : सतिंद्र सिंह नौकरी के लिए इंटरव्यू देने आगरा गया था और साथ ही ताजमहल भी देख आया। इसे कहते हैं - आम के आम गुठलियों के दाम। 

32. आग लगने पर कुआँ खोदना (मुसीबत पड़ने पर ही प्रयत्नशील होना): सारा साल आवारागर्दी करते रहे, अब परीक्षा सिर पर आ गई तो पढ़ना शुरु कर दिया। किसी ने सच ही कहा है-  आग लगने पर कुआँ खोदना।। 

33. ईश्वर की माया कहीं धूप कहीं छाया (सभी एक समान नहीं होते) शीला का बड़ा बेटा तो दसवीं की परीक्षा में पूरे जिले में प्रथम आया है, किंतु छोटा बेटा आठवीं में फेल हो गया। सच है ईश्वर की माया कहीं धूप कहीं छाया। 

34. ऊँची दुकान फीका पकवान (केवल ऊपरी दिखावा करना) : शहर के बीचों बीच एक दुकान बहुत बड़ी थी और उसके बाहर लिखा था - "यहाँ बढ़िया कपड़े मिलते हैं"। पर सारी दुकान देख ली और देखा कि सारा घटिया दर्जे का माल था। सच है , ऊँची दुकान फीका पकवान। 

35. एक हाथ से ताली नहीं बजती (अकेला व्यक्ति झगड़े का कारण नहीं होता) देखो, तुमने भी कुछ ज़रूर कहा होगा तभी तो रामपाल ने तुमसे झगड़ा किया है- एक हाथ से ताली नहीं बजती। 

36. एक बार भूले सो भूला कहाये, बार-बार भूले सो मूर्खानंद कहाये (एक बार गलती पर सावधान हो जाना चाहिए, किंतु फिर वही गलती करना मूर्खता कहलाती है) देखो बेटा! बार-बार तुम गणित के पेपर में वहीं गलतियाँ करते हो, यह कोई अच्छी बात नहीं, तुम्हें समझना होगा कि एक बार भूले सो भूला कहाये, बार-बार भूले सो मूर्खानंद कहाये। 

37. कमली ओढ़ने से फकीर नहीं होता (ऊपरी दिखावा या ढोंग व्यर्थ है, उससे वास्तविकता नहीं आती) अतुल ऊपर-ऊपर से मीठा बोलता है, किंतु मोहल्ले में सबसे मेरी चुगलियाँ करता है। सच है, कमली ओढ़ने से फकीर नहीं होता। 

38. करे कोई भरे कोई (अपराध की सज़ा दूसरे को मिलना) दुकान में चोरी तो प्रीतम ने की, किंतु सज़ा महेश को भुगतनी पड़ी, करे कोई भरे कोई। 

39. खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे (अपमान का बदला दूसरों से लेना) : भैया को पिता जी ने डाँटा था, अब वह अपना गुस्सा मुझ पर निकालने लगा। किसी ने ठीक ही कहा है- खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे।

40. घर की मुर्गी दाल बराबर (सरलता से उपलब्ध का आदर नहीं होता) : अमन के पास दूर-दूर से विद्यार्थी पढ़ने के लिए आते हैं, पर घर में उसका अपना बेटा गगनदीप उससे पढ़ता नहीं। सच ही है-घर की मुर्गी दाल बराबर। 

41. जान है तो जहान है (जीवित रहने पर ही संसार है) : इतने ज्यादा बीमार हो, पहले तंदरुस्त हो जाओ फिर अपने कारोबार को भी देख लेना, भई यह जान लो कि जान है तो जहान है। 

42. जैसी करनी वैसी भरनी (जो जैसा करता है, उसे वैसा ही फल प्राप्त होता है) : रिश्वत लेने वाले मंगतराम को आज सी.बी.आई. ने रंगे हाथ पकड़ लिया। सच है, जैसी करनी वैसी भरनी। 

43. जिसके घर में माई उसकी राम बनाई (जिसकी माँ जीवित है, उसे किसी बात की दुःख/चिंता नहीं) जब से मोहसिन की माँ का देहांत हआ तब से सभी रिश्तेदारों ने भी उससे किनारा कर लिया, सच ही है जिसके घर में माई उसकी राम बनाई। 

44. न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी (कारण के नष्ट होने पर कार्य न होना) : तुम सारा दिन सी.डी. लगाकर वीडियो गेम्स खेलते रहते हो, आज मैं इसे तुम्हारे दोस्त को वापिस कर आती हूँ। न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी। 

45. नाच न जाने आँगन टेढ़ा (काम करना नहीं आना और बहाने बनाना ) : चार्वी के जन्म दिन की पार्टी में सभी ने नेहा को कहा कि कोई गाना सुनाइए, तो वह बोली, 'आज मेरा गला खराब है'। फिर मेधावी के जन्म दिन पर उसे कहा तो कहने लगी कि मुझे गाना याद नहीं है। सच है, नाच न जाने आँगन टेढ़ा। 

46. पाँचों उँगलियाँ बराबर नहीं होती (सब एक जैसे नहीं होते) : कुछ भ्रष्ट लोगों के कारण सभी को भ्रष्ट कहना ठीक नहीं है, क्योंकि पाँचों उँगलियाँ बराबर नहीं होतीं।

47. बगल में छुरी मुँह में राम-राम (भीतर से शत्रुता और ऊपर सी मीठी बातें): मोहनलाल वैसे तो बड़े अदब से बात करता है, किंतु सारा दिन अफसर से मेरी चुगलियाँ करता रहता है। सच में, मोहनलाल पर बगल में छुरी मुँह में राम-राम वाली कहावत लागू होती है। 

48. बार-बार चोर की, एक बार शाह की (कभी न कभी चालाकी पकड़ी ही जाती है ) : कुलविंद्र सिंह की दुकान से हर रोज़ कोई न कोई चीज़ चोरी हो जाती, पर चोर का पता ही न चलता था। एक दिन कुलविंद्र सिंह ने महीना पहले ही रखे नये नौकर को रंगे हाथ पकड़ लिया। सच है, बार-बार चोर की, एक बार शाह की। 

49. बिन माँगे मोती मिले, माँगे मिले न भीख (माँगे बिना अच्छी वस्तु की प्राप्ति हो जाती है, माँगने पर साधारण भी नहीं मिलती) : बैंक कर्मचारियों ने अपनी माँगों के लिए कलमबद्ध हड़ताल कर दी, पर उन्हें क्या मिला ? इनसे तो बिजली कर्मचारी अच्छे रहे, उनका वेतन बढ़ा दिया गया। किसी ने सच ही कहा है कि बिन माँगे मोती मिले, माँगे मिले न भीख। 

50.  मन न मिले तो मिलना कैसा, मन मिला तो तजना कैसा (जिससे मन न मिले उससे मिलने का क्या लाभ? और जिससे मन मिल जाए उसे छोड़ना क्यों): सुमित को मैं दो साल से जानता हूँ पर वह मेरा मित्र नहीं बन पाया और सुशील को इस स्कूल में आए दस दिन भी नहीं हुए और वह मेरा मित्र बन गया है, सच है, मन न मिले तो मिलना कैसा, मन मिला तो तजना कैसा। 

51. मान न मान मैं तेरा मेहमान (ज़बरदस्ती किसी का मेहमान बनना) : सुरेश मुझे थोड़ा बहुत ही जानता था। एक दिन सुरेश शिमला घूमने आया तो मेरे घर सपरिवार आ गया और कहने लगा कि तीन-चार दिन अब तुम्हारे घर पर ही रहेंगे। मैंने मन ही मन कहा, अजब आदमी है, मान न मान मैं तेरा मेहमान। 

52. संभाल अपनी घोड़ी, मैंने नौकरी छोड़ी (स्वाभिमानी व्यक्ति कभी किसी भी मूल्य पर अपना अपमान नहीं सहता) : सुनीता कल स्कूल नहीं आयी थी, इसलिए सुषमा की कॉपी से देखकर काम कर रही थी। अभी उसने काम पूरा भी नहीं किया था पर सुषमा बार-बार कॉपी देने की बात जता रही थी तो सुनीता ने बिना काम पूरा किए उसकी कॉपी वापिस करते हुए उससे कहासंभाल अपनी घोड़ी, मैंने नौकरी छोड़ी।

53. हाथों से नाखून कहाँ दूर हो सकते हैं (जिनसे बहुत नज़दीकी रिश्ता हो उन्हें छोड़ा नहीं जा सकता): अरे, बड़े भाई की बात का बुरा मानकर उससे बोलचाल बंद क्यों कर दी ? हाथों से नाखून कहाँ दूर हो सकते हैं।

54. हाथी को गन्ने ही सूझते हैं (स्वार्थी व्यक्ति को सदा अपने स्वार्थ सिद्ध करने से ही मतलब होता है) : मोहन तुम्हारा यह काम नहीं करेगा, क्योंकि वह तो हर काम करने से पहले यह देखता है कि उसे इसमें लाभ होगा कि नहीं। सच है, हाथी को गन्ने ही सूझते हैं। 



1. अशर्फ़ियाँ लुटें और कोयलों पर मोहर (एक ओर तो लापरवाही से खर्च किया जाए और दूसरी ओर पैसे-पैसे का हिसाब रखा जाए ) 

2. आगे कुआँ पीछे खाई (दोनों ओर संकट) 

3. उल्टे बाँस बरेली को (विपरीत काम करना) 

4. एक और एक ग्यारह होते हैं (एकता में बल है) 

5. एक अनार सौ बीमार (वस्तु थोड़ी, माँग ज़्यादा) 

6. ओस चाटे प्यास नहीं बुझती (कम वस्तु से तृप्ति नहीं होती)

7. कंगाली में आटा गीला (मुसीबत पर मुसीबत) 

8. कागज़ हो तो हर कोई बाँचे, भाग न बाँचा जाए (कागज़ पर लिखा तो पढ़ा जा सकता है किंतु भाग्य नहीं) 

9. खोदा पहाड़ निकली चुहिया (बहुत मेहनत करने पर कम फल की प्राप्ति होना) 

10. गंगा गए गंगादास, जमना गए जमनादास (सिद्धांतहीन व्यक्ति) 

11. घमंडी का सिर नीचा (अहंकारी को सदा मुँह की खानी पड़ती है) 

12. चोर के घर मोर (चालाक का अधिक चालाक से सामना होना) 

13. जाको राखे साइयां मार सके न कोय (जिसका परमात्मा रक्षक हो, उसे कोई नहीं मार सकता) 

14. डूबते को तिनके का सहारा (मुसीबत में थोड़ी सी मदद भी मायने रखती है) 

15. दूर के ढोल सुहावने (दूर से सब अच्छा लगता है)

16. नीम हकीम खतरा जान (अधूरा ज्ञान हानिकारक होता है) 

17. प्यासा कुएँ के पास जाता है, कुआँ प्यासे के पास नहीं (जिसे सहायता लेनी होती है, वह सहायता देने वाले के पास स्वयं जाता है) 

18. मन चंगा तो कठौती में गंगा (मन पवित्र हो तो घर ही तीर्थ के समान) 

19. साँप मरे, लाठी न टूटे (हानि भी न हो और काम भी बन जाए) 

20. होनहार बिरवान के होत चीकने पात (महान व्यक्ति की महानता के लक्षणबचपन से ही दिखाई देने लग जाते हैं)