दयालु रानी 
Dayalu Rani



एक समय की बात है। एक जंगल में एक पेड़ पर एक छोटी चिड़िया रहती थी। उस चिड़िया में एक विचित्र गुण था। सुबह-सुबह जब वह गाती थी तो उसकी चोंच से सच्चे मोती झड़ते थे। 

एक सुबह, एक बहेलिया जंगल में पक्षियों की खोज में घूम रहा था। अचानक उसकी दृष्टि गाती हुई चिड़िया व उसकी चोंच से झड़ते हुए मोतियों पर पडी। यह देखकर वह आश्चर्यचकित रह गया। उसने तुरंत सारे मोतियों को उठाया और उस चिड़िया को पकड़ने की ठान ली। 

शाम को वह जंगल लौट कर आया और उसने उस पेड़ के नीचे जाल बिछा कर उस पर अनाज के दाने बिखेर दिये। 

सुबह जब बहेलिया जंगल में आया तो उसने छोटी चिडिया को जाल में फँसा हुआ पाया। अब तो उसकी खुशी का ठिकाना न रहा। वह चिड़िया को अपने घर ले गया और उसे एक पिंजरे में बंद कर दिया। कुछ ही समय में वह चिड़िया की चोंच से गिरे मोतियों के दाने बेचकर धनवान बन गया। 

जब बहेलिया अत्यंत धनवान हो गया, तो उसे राजकीय सम्मान व प्रसिद्धि पाने की सूझी। इसके लिए उसने विचित्र चिड़िया के लिए एक सोने का पिंजरा बनवाया और उसे उपहार स्वरूप राजा को दे दिया। राजा भी चिड़िया का विचित्र गुण देखकर दंग रह गया और उसने बहेलिये को चिड़िया के बदले ढेर सारे बहुमूल्य उपहार दिए। 

कुछ ही समय में राजकोष भी सच्चे मोतियों से भर गया। फिर राजा ने चिडिया को सोने के पिंजरे समेत अपनी प्रिय रानी को उपहार में दे दिया। रानी बहुत सुन्दर व कोमल हृदय की थी। उसको नन्ही चिडिया बहत प्यारी लगी। उसने चिड़िया का पिंजरा अपने पलंग के पास रख लिया। वह चिडिया को एकटक निहारने लगी। उसे महसूस हुआ कि पिंजरे में बंद चिड़िया बहुत उदास है। रानी ने उससे पूछा "चिड़िया, तुम चुप क्यों हो, मुझसे बात क्यों नहीं करती। तुम्हें क्या दुःख है।" चिड़िया बोली, "मैं आजाद होना चाहती हूँ।" "ठीक है नन्ही चिड़िया, मैं तुम्हें आजाद कर देती हूँ।" यह कहकर उसने तुरंत पिंजरे का दरवाजा खोल कर चिड़िया को मुक्त कर दिया। मुक्त होते ही चिड़िया प्रसन्न हो कर बोली, "हे गनी, कितना दयालु हृदय है तुम्हारा! निःसन्देह, इस राजमहल में सबसे बहुमूल्य वस्त तुम ही हो। तुमने मेरे दुख को समझा और मुझे आजाद कर दिया। इसके लिए मैं तुम्हारा हार्दिक धन्यवाद अदा करती हूँ। आज से मैं सिर्फ तुम्हारे लिए गाऊँगी।" यह कहकर चिड़िया उड़ गई। चिड़िया की मुक्ति से रानी भी खुश थी। अब चिड़िया रोज सुबह रानी से मिलने उसके महल में आती और उसकी खिड़की पर बैठकर गाना गाती, जिससे उसके मुंह से मोती झड़ते। फिर वह उड़ जाती।

शिक्षाः दयालुता से बड़ा कोई गुण नहीं है।