शेर और जंगली सुअर
Sher Aur Jungali Suwar
एक शाम एक शेर जंगल में शिकार की तलाश में निकला। शिकार के लिए वह एक हिरन के पीछे बहुत दूर तक भागा, परंतु उसे पकड़ नहीं पाया। थक कर वह एक तालाब पर पानी पीने पहुँचा। अभी वह पानी पी ही रहा था कि कहीं से एक हृष्ट-पुष्ट जंगली सुअर भी वहाँ पानी पीने आ गया और शेर के साथ अपनी प्यास बुझाने लगा। शेर को, जो कि जंगल का राजा था, सुअर का अपने साथ पानी पीना अच्छा नहीं लगा। वास्तव में उसे अपना अपमान लगा। सुअर, शेर की इच्छा को भाँप चुका था, परन्तु फिर भी शेर की लेश मात्र भी चिंता किए बिना वह वैसे ही पानी पीता रहा।
शेर ने सुअर को जाने के लिए कहा पर सुअर ने जाने से मना कर दिया। इसी बात पर उनमें आपस में ठन गई और दोनों में युद्ध छिड़ गया। दोनों ने एक-दूसरे पर इतनी उग्रता से आक्रमण किया कि कुछ ही देर में दोनों लहुलुहान हो गए, परन्तु उनका युद्ध चलता रहा। दोनों को लहुलुहान देख कर कुछ गिद्ध वहाँ पहुँच गए और दोनों में से किसी एक की मृत्यु की प्रतीक्षा करने लगे।
जब लडते-लडते शेर और सुअर थोडा थक गए तो कुछ देर दम लेने के लिए रुक गए। अचानक उनकी दृष्टि गिद्धों पर पड़ी तो उन्होंने पाया कि वह उन दोनों को बहुत ललचायी दृष्टि से देख रहे हैं। दोनों ही तुरन्त समझ गए कि गिद्धों की मंशा क्या है। अचानक गिद्ध चीख-चीख कर अपने बाकी साथियों को बुलाने लगे क्योंकि उन्हें विश्वास था कि शेर और सुअर के भीषण युद्ध में यदि किसी एक की मृत्यु न भी हुई तो भी एक या दोनों योद्धा घायल होकर, धरती पर गिर कर उनका भोजन तो बनेंगे ही।
भाग्यवश शेर और सुअर, दोनों को ही गिद्धों को देखकर सद्बुद्धि आ गई। दोनों की बुद्धि में आ गया कि इस युद्ध में केवल गिद्धों को ही लाभ है और उन दोनों को हानि। दोनों ने न सिर्फ लड़ना बंद किया अपितु, एक दूसरे को मित्रता के लिए आमंत्रित भी किया।
शेर बोला, "आओ दोस्त! पानी पीने चलते हैं। मुझे तुमसे अभद्र व्यवहार नहीं करना चाहिए था। मैं अपने व्यवहार के लिए तुमसे माफी माँगता हूँ। "अरे दोस्त! तुम क्यों माफी माँगते हो? गलती तो मेरी भी थी। चलो, चलकर पानी पीते हैं।" सुअर बोला।
फिर दोनों ने अच्छे मित्रों की तरह, तालाब से एक साथ पानी पिया और फिर मिलने की आशा रखते हुए दोनों अपने-अपने रास्ते चल दिये।
बेचारे गिद्ध बस उन्हें जाते हुए देखते रहे।
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