व्यापारी, कुम्हार और गधा
Vyapari, Kumhar aur Gadha
एक बार एक व्यापारी को लंबी यात्रा पर जाना पड़ा। लंबी यात्रा पर पैदल जाना तो संभव नहीं था, इसलिए उसने एक कुम्हार से बात की कि उसे उसका गधा किराये पर चाहिए। यात्रा लंबी है इसलिए वह कुम्हार को मुँह माँगा किराया देगा। पहले तो कुम्हार ने गधा देने से मना कर दिया था, पर व्यापारी के समझाने पर वह मान गया था। कुम्हार को डर था कि व्यापारी से कहीं गधा गुम न हो जाए। तब वह क्या करेगा। क्योंकि यह गधा ही उसकी जीविका का एकमात्र सहारा था। अंत में यह तय हुआ कि गधे को हाँकने के लिए कुम्हार भी साथ चलेगा।
गर्मियों का मौसम था और धूप भी बहुत तेज थी। दोपहर तक व्यापारी गधे की पीठ पर सवारी करता रहा, परन्तु अब वह थक गया था और थोड़ा विश्राम करना चाहता था। अतः उसने कुम्हार को रुकने के लिए कहा। उसने अपने आस-पास नजर दौडाई पर उसे कहीं कोई छायादार वृक्ष नहीं दिखाई दिया। उसने सोचा कि क्यों न गधे की छाया में विश्राम किया जाए। उधर गधे का मालिक भी थक गया था और वह भी विश्राम करना चाहता था। उसे भी गधे की परछाई के अतिरिक्त कोई और छाँव नहीं दिखाई दे रही थी। व्यापारी गधे की छाँव में बैठ गया तो यह देखकर कुम्हार बोला, "अरे! तुम उसकी छाया में क्यों बैठ रहे हो? वहाँ से हटो। मैं वहाँ बैठूंगा।"
व्यापारी बोला "तुम मुझे गधे की छाया में विश्राम करने से कैसे रोक सकते हो? मैंने तुम्हें गधे के पैसे दिये हैं।"
इस पर कुम्हार गुस्से में बोला "नहीं! तुम गधे की छाया का आनंद नहीं ले सकते क्योंकि तुमने केवल गधे की सवारी के पैसे दिये हैं। उसकी छाया का उपयोग करने के नहीं।"
बस दोनों में इसी बात पर बहस होने लगी। उनकी बहस बढ़ते-बढ़ते झगड़े में बदल गई और वे दोनों एक दूसरे को मरने-मारने पर उतर आए।
हालाँकि गधों को मूर्ख समझा जाता है, पर यह गधा थोड़ा समझदार था। वह व्यापारी और कुम्हार की मर्खता पर हैरान हो रहा था। दोनों बेवजह लड़ रहे हैं।
इन्हें अपनी थकान मिटाने और छाया में बैठने की चिंता है पर इन्हें मेरी तनिकी चिंता नहीं है। उसने उन दोनों को सबक सिखाने की ठान ली।
दोनों को लड़ाई में व्यस्त देख गधा वहाँ से भाग खड़ा हुआ। दोनों को बहुत देर बाद समझ आया कि वे जिस गधे के लिए लड़ रहे हैं, वह तो कब का नौ दो ग्यारह हो चुका है। फलस्वरूप व्यापारी अपनी यात्रा पूरी नहीं कर पाया और कुम्हार को भी अपने गधे से हाथ धोना पड़ा जो कि उसकी कमाई का इकलौता साधन था।
अब व्यापारी और कुम्हार दोनों को ही आभास हो चुका था कि उन्होंने बेसिर पैर की बात पर लड़ कर कितनी मूर्खता दिखाई और अपना नुकसान किया।
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