कछुआ और खरगोश 
Kachuva aur Khargosh



मोंटू खरगोश और चंद्र कछुए के बीच अच्छी दोस्ती थी। मोंटू अक्सर चंदू को उसकी धीमी चाल पर छेड़ा करता थी, पर नंदू कभी कुछ न कहता। एक दिन मोंटू बोला, "नंदू ! मेरे साथ दौड़ लगाएगा। वैसे तो मैं ही प्रथम आऊँगा, पर क्या पता धीमे चलते-चलते तू ही आगे निकल जाए।"और वह हँस पड़ा। 

"मुझे मंजूर है।" नंदू ने कहा। यह सुनकर मोंटू को तो अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ। वह बोला, "नंदू! एक बार अच्छी तरह सोच ले।" 

"सोचना क्या? मैं तुम्हारे साथ दौड़ लगाऊँगा और क्या?" नंदू ने विश्वास के साथ कहा। 

"ठीक है। तो फिर हम दोनों में से झील वाले पेड़ के पास जो पहले पहुँचेगा, वही विजेता होगा।" मोंटू ने बताया। थोड़ी देर में दोनों दौड़ के लिए तैयार होकर आ गए। एक दो, तीन के साथ उनकी दौड़ शुरू हुई। मोंटू तेजी से दौड़ता हुआ चंदू से आगे निकल गया। मोंटू ने पीछे मुड़कर चंदू को देखा तो वह उसे कहीं दिखाई नहीं दिया।

मोंटू ने सोचा, 'चंदू को आने में अभी बहुत समय लगेगा। तब तक मैं सो जाता हूँ।

अगर वह यहाँ पहुँच भी गया तो मैं दौड़कर उससे आगे निकल जाऊँगा। बहुत धीरे चलता है। और वह सो गया। 

कुछ देर में चंदू वहाँ पहुँचा और मोंटू को सोता हुआ छोड़कर आगे निकल गया। वह धीरे-धीरे चलते हुए अपनी मंजिल तक पहुँच गया और मोंटू के आने का इंतजार करने लगा। 

जब मोंटू की नींद खुली तो उसने अपने चारों ओर देखा, पर चंदू दिखाई न दिया। उसने सोचा कि चंदू अभी पीछे है। वह तेजी से दौड़ते हुए झीलवाले पेड़ की ओर चल पड़ा। वहाँ पहुँचकर जब उसने चंदू को पहले से पहुँचा हुआ देखा तो वह हैरान रह गया। 

चंदू बोला,"आओ, दोस्त आओ। तुम्हें तो अपनी तेज चाल पर बड़ा घमंड था! तुमने सोचा कि तुम सो भी जाओगे तो उठने पर तेज चाल से चलते हुए मंजिल तक पहुँच जाओगे, पर तुम गलत थे। मंजिल से पहले कभी रूकना नहीं चाहिए। मैं धीमी चाल से चलते हुए तुमसे आगे निकलकर दौड़ जीत गया।" 

मोंट्र कुछ न बोला, उसने शर्म से अपना सिर झुका लिया।

शिक्षाः घमंडी का सिर हमेशा नीचा होता है।