चालाक सारस
Chalak Saras
एक सारस और लोमड़ी में बड़ी अच्छी दोस्ती थी। दोनों अकसर एक दूसरे के घर आया-जाया करते थे। एक दिन लोमड़ी ने सारस से कहा, "दोस्त ! यँ तो तुम कई बार मेरे घर आ चुके हो, लेकिन खाने पर कभी नहीं आए। मैं तुम्हें अपने घर पर खीर खाने की दावत देती हूँ। तुम आज शाम ही मेरे घर आना, मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी।"
सारस बोला, "ठीक है। मैं शाम को तुम्हारे घर पहुँच जाऊँगा।"
सारस शाम को नियत समय पर लोमड़ी के घर पहुँच गया। लोमड़ी ने उसका स्वागत किया। थोड़ी देर तक दोनों बातें करते रहे और फिर लोमडी ने खीर परोसी। लोमड़ी ने खीर एक चौड़ी थाली में परोसी। यह देखकर सारस चकित रह गया। थाली के एक तरफ सारस बैठा और दूसरी तरफ लोमड़ी। सारस की चोंच लंबी होने के कारण वह खीर नहीं खा सका।
लोमड़ी बोली, "अरे ! खाओ न दोस्त ! तुम शरमा क्यों रहे हो? खाओ-खाओ।" और वह खुद ही जल्दी-जल्दी खीर खाने लगी।
सारस को पूरी बात समझते देर न लगी। उसने तुरंत लोमड़ी को अगले दिन अपने घर खीर की दावत के लिए बुलाया। लोमड़ी ने उसका प्रस्ताव मान लिया।
अगले दिन लोमड़ी तय समय पर सारस के घर पहुँची। सारस ने खीर सुराही में परोसी। सुराही के एक तरफ सारस और दूसरी तरफ लोमड़ी बैठी। सारस की चोंच लंबी होने के कारण सुराही में आसानी से पहुँच रही थी, जबकि लोमड़ी का मुँह वहाँ तक नहीं पहुँच पा रहा था। सारस झटपट सारी खीर खा गया। लोमड़ी को सुराही के बाहर लगी खीर चाटकर ही संतुष्ट होना पड़ा। सारस बोला, "खीर अच्छी बनी थी न!"
लोमड़ी ने बदले में सिर्फ सिर हिलाया और उससे विदा लेकर अपने घर लौट गई। उसे उस दिन भूखा ही सोना पड़ा।
इस प्रकार सारस ने उसे सबक सिखाया।
शिक्षाः जैसे के साथ तैसा करना कभी-कभी जरूरी होता है।
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