सूर्य और वायु 

Surya Aur Vayu



एक समय की बात है। एक दिन सूर्य और वायु में अचानक विवाद उठ गया कि उन दोनों में अधिक शक्तिशाली कौन है? 

वायु का कहना था कि वह अधिक शक्तिशाली है। वह चाहे तो किसी को भी हिलाकर रख सकती है। उसके प्रकोप से कोई भी बचा नहीं रह सकता। परंतु सूर्य, हवा की बात से सहमत नहीं था। उसका मानना था कि शक्ति में उसकी तुलना किसी से नहीं की जा सकती, अत: वही अधिक शक्तिशाली है। 

वे दोनों अभी आपस में लड़ ही रहे थे कि दोनों की दृष्टि एक व्यक्ति पर पड़ी। वह व्यक्ति अपने शरीर पर दुशाला लपेटे हुए वहाँ से निकल रहा था। अचानक सूर्य के मन में एक विचार आया। वह मुस्कुरा कर बोला, "अब हम इस बात का हल ढूंढ सकते हैं कि हम में से अधिक शक्तिशाली कौन है?"

"वह कैसे?", वायु ने पूछा। 

सूर्य बोला, "वह देखो, उस व्यक्ति को। वह दुशाला ओढ़े हुए जा रहा है। हम दोनों में से जो भी इस व्यक्ति के शरीर पर से दुशाला उतरवा सकेगा, वही अधिक शक्तिशाली होगा। बोलो, मंजूर है।"

वायु को यह बात अँच गई परंतु उसने सूर्य के सम्मुख एक शर्त रखी कि पहले दुशाला उतरवाने का प्रयास वह करेगी। सूर्य ने सहर्ष ही उसकी बात मान ली। 

वायु धीमे-धीमे बहने लगी, उसे इस बात की पूरी आशा थी कि वह व्यक्ति दशाला उतार कर शीतल वायु का आनंद लेगा। परंतु ऐसा नहीं हुआ। व्यक्ति पहले की तरह ही दुशाला को ओढ़े रहा। अपना पहला प्रयास विफल होता देखकर वायु क्रोधित हो उठी और अत्यंत उग्रता से बहने लगी। यह देखकर उस व्यक्ति ने दुशाला और कसकर ओढ़ लिया। वायु अपने इस प्रयास में भी असफल रही।

अब सूर्य की बारी थी। पहले वह शांत भाव से चमकने लगा। इतनी तेज हवा बाद सूर्य की हल्की किरणों के ताप से उस व्यक्ति को राहत मिली तो उसे दुशाले पर अपनी पकड़ थोड़ी ढीली कर दी। फिर धीरे-धीरे सूर्य ने अपनी गाय बढ़ानी शुरू की। व्यक्ति को गर्मी महसूस होने लगी। फलस्वरूप व्यक्ति ने अपने शरीर से दुशाला उतार दिया। 

यह देखकर वायु लज्जित हो गई और उसने सूर्य की शक्ति को अपने से महान मान लिया। 

इस प्रकार वायु और सूर्य की शक्ति का परीक्षण हो सका और अहंकारी हवा का घमंड चूर-चूर हो गया।

शिक्षाः अहंकारी की सदा पराजय होती है।