एक कुली की आत्मकथा 
Ek Kuli Ki Atmakatha



300 Words

भारत के हर शहर और टाउन में कुली एक बहुत चर्चित चेहरा है। उसका सम्बन्ध समाज की निम्नतम वर्ग से होता है और ये कुली का पेशा पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहता है। प्रत्येक कुली का नम्बर होता है और वह रेलवे विभाग में पंजीकृत होता है। 


वह बड़ा परिश्रमशील होता है। सुबह सूर्योदय से लेकर देर रात तक वह अपने काम में जुटा रहता है। सवारियों के भारी समान को अपने सिर पर रखकर उसकी मंजिलों तक पहुँचाता है और इस प्रकार वह दो वक्त की रोटी जुटा पाता है। 


हर कुली के कंधों से लटकी एक मजबूत रस्सी होती है जिसको वे अत्यधिक सामान उठाने में सहायता के रूप में प्रयोग करता है। सामान्यतः कुली बड़ी संख्या में ताँगा स्टैण्ड, बस स्टैण्ड और रेलवे स्टैण्ड पर दिखाई देते है। सामान्यतः कुली कई प्रकार के होते है, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण श्रेणी रेलवे कुली की होती है।


रेलवे कुली सामान ही नही उठाते बल्कि एक गाइड के रूप में अपनी सेवा भी प्रदान करते है। कभी-कभी वे सवारियों सीट प्राप्त करने में मदद करते है। वह एक नीली और लाल ड्रेस पहनता है और एक ब्रास का बिल्ला भी अपने बाजू पर बाँधे रहता है जिस पर उसका नम्बर भी लिखा होता है। 


कभी-कभी कोई कुली धूर्त और चालाक भी होता है और गैर ईमानदार भी होता है। वह ग्रामीण लोगों और महिलाओं से कुछ अधिक मजदूरी माँगता है और कोई रियायत नही देता। 


फालतू समय कुली लोग आपस में चुटकले सुनाते है तथा ताश खेलते है। अन्ततः हम यह कह सकते है कि कुली समाज का एक महत्वपूर्ण सदस्य है। हमें उसके साथ विन्म्रता रखनी चाहिए। सरकर को उनकी दशा सुधारने के लिए कदम उठाने चाहिए ताकि कुली समाज में सम्मानपूर्वक अपना जीवन व्यतीत कर सकें।