गणतंत्र दिवस 
Gantantra Diwas



600 Words

हमारे देश में 26 जनवरी का दिन एक अमर दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह हमारा विशिष्ट राष्ट्रीय पर्व है। इस अमर दिवस का स्मरण करते ही हमारा हृदय अलौकिक उत्साह एवं उल्लास से पूरित हो जाता है। यह दिवस 'गणतंत्र दिवस' के नाम से भी जाना जाता है। यह राष्ट्रीय पर्व हर वर्ष हमें स्वतंत्र होने का अहसास करा कर चला जाता है। 

आज से छह दशक पूर्व रावी नदी के तट पर कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में स्वर्गीय जवाहरलाल नेहरू के सभापतित्व में यह घोषणा की गई थी कि यदि ब्रिटिश सरकार औपनिवेशिक स्वराज्य देना चाहे तो 31 दिसंबर, सन 1929 ई. को रात्रि के 12 बजे से उसे लागू करने की घोषणा करे अन्यथा 1 जनवरी से हमारी माँग पूर्ण स्वाधीनता की होगी।

इसी स्वतंत्रता की माँग के समर्थन में 26 जनवरी सन 1930 ई., रविवार को संपूर्ण भारत में राष्ट्रीय ध्वज की संरक्षणता में जुलूस निकाले गए, सभाएँ की गईं, प्रस्ताव पास करके प्रतिज्ञाएँ की गईं कि जब तक पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त न कर लेंगे, तब तक हमारा स्वतंत्रता आंदोलन चलता रहेगा। 

उसी क्षण से प्रत्येक 26 जनवरी हमारे लिए राष्ट्रीय पर्व का रूप धारण कर चुकी थी। इससे अंग्रेज क्षुब्ध हो उठे। स्वतंत्रता के दीवानों पर लाठियों की वर्षा होती थी। निहत्थों को संगीनों से बींधा जाता था। देशभक्तों को बंदी बनाया जाता था। परन्त समय ने पलटा खाया और 15 अगस्त, सन 1947 को हमें स्वतंत्रता मिली। 

हमारा संविधान दिसंबर, 1949 ई. में बनकर तैयार हुआ। 26 जनवरी, सन 1950 ई. को भारतवर्ष पूर्ण रूप से गणतंत्र राज्य घोषित कर दिया गया। उसी दिवस से हमारा संविधान लागू हो गया। यह दिवस भारतीयों ने पूर्णोल्लास के साथ मनाया। हम पूर्णरूप से स्वाधीन हो गए। 

प्रथम और अंतिम भारतीय गवर्नर जनरल चक्रवती राजगोपालाचारी के स्थान पर हमारे राष्ट्र के प्रथम राष्ट्रपति देशरत्न डा. राजेंद्र प्रसाद बनाए गए। लोकनायक जवाहरलाल नेहरू ने प्रधानमंत्री के रूप में राष्ट्र की डोर सँभाली।

इसी शुभ घड़ी से जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधियों का शासन आरंभ हुआ। केद्र में संसद और प्रत्येक राज्य में विधान सभाएँ अपने अस्तित्व में आईं तथा संपूर्ण राष्ट्र में संसदीय प्रणाली के माध्यम से स्वशासन आरंभ हुआ। इतने अल्प समय में, इतनी बड़ी उपलब्धि निश्चय ही एक महान ऐतिहासिक घटना की प्रतीक है।

इसदिन सार्वजनिक अवकाश रहता है। देश के कोने-कोने में प्रभात फेरियाँ लगाई जाती हैं। राष्ट्रीय ध्वज फहराया जाता है। सेना के तीनों अंगों की गतिविधियों को दर्शाया जाता है। हर प्रांत की मनोरंजक तथा सांस्कृतिक झाँकियों का कार्यक्रम चलता है। 

भारत की राजधानी दिल्ली का गणतंत्र समारोह दर्शनीय है। इस दिवस पर सुबह से लोग लाखों की संख्या में इंडिया गेट पर पहुचते हैं। विजय चौक में प्रधानमंत्री, सांसद, राजदूत और विदेशी अतिथियों के बैठने का अच्छा प्रबंध रहता है। 

प्रातः 9.30 बजे महामहिम राष्ट्रपति विजय चौक पर पधारते हैं। वहाँ मंच पर खड़े होकर वे सेना के तीनों अंगों द्वारा दी गई सलामी लेते हैं तथा उनकी शोभा यात्रा का निरीक्षण करते हैं। इस परेड में हमें टैंक और युद्ध में कार्य करने वाले अनेक आधुनिक अस्त्र-शस्त्र देखने को मिलते हैं।

सैनिक टुकड़ियों के बीच में बैंड वादक विद्यालय एवं महाविद्यालयों के छात्र-छात्राएँ परेड एवं करतब दिखाते हुए निकलते हैं। अंत में विभिन्न राज्यों की झाँकियाँ अपने राज्य की प्रगति को सूचित करती हुईं निकलती हैं। यह भव्य परेड दिल्ली के प्रमुख बाजारों में से होती हुई 12 बजे दोपहर को लाल किले पर पहुँचती है। रात्रि को सरकारी भवनों पर रोशनी की जाती है। आतिशबाजियाँ छोड़ी जाती हैं। राष्ट्रपति देश-विदेश के गणमान्य अतिथियों को भोज के लिए आमंत्रित करते हैं। 

गणतंत्र दिवस जहाँ एक ओर राष्ट्रीय एकता की भावना पैदा करता है, वहीं दूसरी ओर शहीदों को स्मरण कराता है। इसी शुभ पर्व पर हर एक भारतीय को राष्ट्र के पवित्र संविधान की मर्यादा रखने के लिए। जीवन बलिदान करने की प्रतिज्ञा करनी चाहिए।