दीपावली 
Deepawali



600 Words

समाज में मानव आनंद का अनुभव करने के लिए विशेष अवसरों की खोज करता है। त्योहार उन विशेष अवसरों में से एक हैं। सामाजिक त्योहारों में दीपावली का अपना एक विशेष स्थान है। यह जीवन के अज्ञान रूपी अंधकार को दूर करके प्रकाश में सभी सुविधाओं को जुटाने का संकल्प है। यह दीपक की भाँति प्रकाश की तेजोमयता प्राप्तकर जीवन को तेजवान बनाने की मधुर प्रेरणा देता है। 


दीपावली शब्द दीप+अवली से मिल कर बना है, जिसका साधारण अर्थ दीपों की पंक्ति का उत्सव है। अतः दीपावली के त्योहार का भी अर्थ हुआ प्रकाश, उल्लास और ज्ञान का पर्व। 


अमावस्या की रात्रि के घोर तिमिर को जिस प्रकार खिलखिलाती दीपावली दूर कर देती है उसी प्रकार मानव के निराशा व दुख के अंधकार को ज्ञान, आशा और सुख की दीप-रश्मियाँ दूर कर देती हैं। 


इस शुभ त्योहार के साथ अनेक पौराणिक व धार्मिक कथाएँ जुड़ी हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम चौदह वर्ष के कठोर वनवास पूरा कर इसी दिन अयोध्या वापस आए थे। अयोध्यावासियों ने कार्तिक अमावस्या को श्री राम के अयोध्या पधारने पर हर्षोल्लास में दीपक जलाए। उस समय से दीपावली श्री राम के लौटने का प्रतीक हो गई। इस दिन बंगाल में आज के दिन महाकाली की पूजा बड़ी धूमधाम से की जाती है। कई महापुरुषों के जीवन एवं मरण का संबंध भी इस त्योहार से रहा है। 


स्वामी शंकराचार्य की पार्थिव देह इस दिन चिता पर रख दी गई और सहसा उसमें प्राण आ गए। शोक का वातावरण हर्ष में बदल गया। जैनियों के मतानुसार महावीर स्वामी का निर्वाण इसी दिन हुआ। स्वामी रामतीर्थ इसी दिन जन्मे और इसी दिन स्वर्ग सिधारे। आर्यसमाज के प्रवर्तक स्वामी दयानंद सरस्वती का निर्वाण इसी दिन हुआ था। इन्हीं सब खुशियों में दीपक जलाए जाने लग गए। 


यह वर्षांत में मनाई जाती है। एक नरकासुर का वध तो योगीराज श्री कृष्ण ने कर दिया था किन्तु यह दूसरा गंदगी रूपी नरकासुर प्रति वर्ष जन्म लेता है और इसे हर वर्ष ही यमलोक गमन करना पड़ता है। इस उत्सव के आते ही गंदे घरों की सफाई तथा मरम्मत की जाती है। मच्छरों एवं कीटाणुओं का नाश हो जाता है। कृषक वर्ग इस त्योहार को नए अन्न के आगमन की खुशी में मनाता है। इस अन्न का लक्ष्मीपूजन कर उपयोग में लाते हैं। 


धन-तेरस से इस त्योहार का आरंभ हो जाता है। इस दिन हर परिवार धातु का कोई-न-कोई बर्तन अवश्य खरीदता है। दूसरा दिन नरक-चौदस के नाम से प्रसिद्ध है। देहातों में यह दिन छोटी दीपावली के नाम से विख्यात है। 


समुद्र मंथन पर इसी दिन लक्ष्मी जी प्रगट हुई थीं और देवताओं ने उनकी पूजा की थी। इसीलिए आज भी इस दिन लक्ष्मी जी की पूजा होती है। दीपावली के दूसरे दिन कार्तिक शुक्ला की प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा होती है। इसी दिन अन्नकूट होता है। इसके बाद का दिन यम-द्वितीया के नाम से प्रसिद्ध है। 


बहिन भाई को टीका करती है और भाई अपनी श्रद्धा और शक्ति के अनुसार बहिन को कुछ भेंट देता है। इस शुभ त्योहार पर पकवान और मिष्ठान्न बनते हैं। घर-घर, गली-गली और बाजार दीपकों, मोमबत्तियों और रंग-बिरंगे बल्बों से जगमगा उठते हैं। 


व्यापारी वर्ग उस दिन नए वर्ष के बहीखाते बदलता है। बच्चे आतिशबाजी छोड़ते हैं। लोग अपने इष्ट मित्रों को दीपावली कार्ड व मिष्ठान्न आदि भेजकर उनके प्रति अपनी शुभकामनाएँ भेजते हैं। रात्रि में लक्ष्मी पूजन होता है। 


दीपावली अत्यंत लाभप्रद त्योहार है। इस बहाने पावस के बाद सफाई हो जाती है। स्वच्छता उत्तम स्वास्थ्य का प्रतीक है। सरसों के तेल के दीपक कीटाणुओं को नष्ट करने में समर्थ होते हैं। यह आशा, प्रकाश, स्पृह और आह्लाद तथा उत्साह का त्योहार है किन्तु इस शुभ अवसर पर मदिरापान और जुआ खेलना बहुत हानिकारक है।